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विधिवाद ] प्रथम परिच्छेद
[ ७३ यागलक्षणस्य धर्मे नियोगे तस्याऽपरिनिष्पन्नत्वात् 'स्वरूपाभावाद्वाक्येन प्रत्येतुमशक्यत्वस्य विधावपि विषयधर्मे समानत्वात्कुतो विषयधर्मो विधिः ? पुरुषस्यैव विषयतयावभासमानस्य विषयत्वात्तस्य. च परिनिष्पन्नत्वान्न तद्धर्मस्य विधेरसम्भव इति चेत् 1०तहि यजनाश्रयस्य 11द्रव्यादेः सिद्धत्वात्तस्य च विषयत्वात्कथं तद्धर्मो नियोगोपि न सिद्धयेत ? येन रूपेण विषयो विद्यते तेन तद्धर्मो नियोगोपीति, तदनुष्ठानाभावे13 14विधिविषयो येन रूपेणास्ति तेन तद्धर्मस्य विधेः कथमनुष्ठानम् ?
के ऊपर विधिवादी के द्वारा कटाक्षवर्षा किये जाने पर भट्ट मीमांसकों ने विधिवादी को आड़े हाथ लिया है एवं श्लोकवातिकालंकार में आचार्यों ने नियोगवादी की ओर से विधिवादी के ऊपर दोषारोपण किया है।
तथा हे विधिवादिन् ! यदि आप नियोगवादी को ऐसा कहें कि यागलक्षण विषय का नियोग रूप धर्म मानने पर उसके परिनिष्पन्न होने से उसके स्वरूप का अभाव ही है अतः वाक्य के द्वारा उसका निश्चय करना अशक्य है तब तो यह बात विषय के धर्म रूप विधि में भी समान है अतः विषय का (आत्मा का) धर्म विधि है यह बात कैसे सिद्ध होगी?
विधिवादी-पुरुष ही विषय रूप से अवभासित होता है क्योंकि वह विषय है और वह पुरुष निष्पन्न है इसलिये उस पुरुष का धर्म विधि है यह कथन असंभव नहीं है।
भाट्ट-तब तो यजन-यज्ञ के आश्रयभूत द्रव्यादि सिद्ध हैं और वे विषय भी हैं। पुनः उन द्रव्यादिक का धर्म भी नियोग है यह बात भी क्यों नहीं सिद्ध हो जावेगी? क्योंकि जिस रूप से विषय रहता है उस रूप से उसका धर्म नियोग भी रहता है यदि कहो कि उस नियोग के अनुष्ठान का अभाव है तब तो विधि का विषय जिस रूप से है उस विषय के धर्म रूप विधि का भी अनुष्ठान कैसे हो सकेगा।
विधिवादी-जिस अंश-दर्शन आदि रूप से विधि नहीं है उस अंश से विधि का अनुष्ठान घटित होता है।
भाट्ट-ऐसा अनुष्ठान तो नियोग में भी समान है।
भावार्थ-विधिवादी कहते हैं कि यदि नियोग को याग स्वरूप विषय का धर्म माना जाता है तो मान लीजिये, किन्तु वह यज्ञ अभी बनकर पूर्ण तो हुआ नहीं है। उपदेश सुनते समय तो उस यज्ञ का स्वरूप है ही नहीं, पुनः वेदवाक्य के द्वारा उसका निर्णय कैसे हो सकेगा? इस पर भाट्ट कहता है
1 प्रत्येतुमशक्यत्वं कुत इत्युक्ते तत्र समर्थनपर प्रथम साधनम् । 2 दूषणस्य । 3 अवश्यकरणीयदर्शनादो। 4 दर्शनादि । 5 आत्मनः धर्मः। 6 विधिवादी। 7 दर्शनादिरूपेण । (ब्या० प्र०) 8 पुरुषस्य । 9 अवश्यकरणीयदर्शनादेः। 10 नियोगमतमवलम्ब्य भावनावादी वदति। 11 पुरुष । रूपादि । (ब्या० प्र०) 12 द्रव्यादेः । 13 तस्य नियोगस्य करणाभावे सति विधेरप्यनुष्ठानं मा भूत् । 14 पुरुष । (ब्या० प्र०)
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