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नियोगवाद ] प्रथम परिच्छेद
[ ३७ नियोगोप्यविद्यमान एवेति 'कथमसौ वाक्यार्थः खपुष्पवत् । 'बुद्धयारूढस्य भाविनस्तस्य' वाक्यार्थत्वे सौगतमतानुसरणप्रसङ्गः। अथ 'तद्वाक्यकाले विद्यमानोसौ तहि न नियोगो वाक्यस्यार्थ:-तस्य 'यागादिनिष्पादनार्थत्वात् —निष्पन्नस्य च यागादेः पुननिष्पादनायोगात्,' पुरुषादिवत् । अथ तस्य किञ्चिदनिष्पन्नं रूपं तदा तन्निष्पादनार्थो नियोग इति मतम् तर्हि 1'तत्स्वभावो नियोगोप्यनिष्पन्न इति कथं वाक्यार्थः ? 12स्वयमसन्निहितस्य कल्पनारूढस्य वाक्यार्थत्वे स13 एव सौगतमतप्रवेशः । फलस्वभावो नियोग इत्ययमपि पक्षो न कक्षी कर्तव्यः-तस्य14 नियोगत्वाघटनात् । न हि स्वर्गादिफलं नियोगः- 15फलान्तरपरिकल्पनप्रसाङ्गात्
__ भाट्ट-पुनः वह विषय उस वेदवाक्य के काल में स्वयं अविद्यमान है या विद्यमान ? यदि अविद्यमान रूप प्रथम पक्ष लेवें तब तो उस विषय का स्वभाव रूप नियोग भी अविद्यमान हो रहा । पुनः ऐसी स्थिति में वह नियोग आकाश-कुसुम के समान वेदवाक्य का अर्थ कैसे हो सकता है ? बुद्धि से परिणत (वर्तमान काल में कल्पित विषय रूप) भावी-विषय स्वभाव नियोग को वेदवाक्य का अर्थ मानने पर तो सौगत मत के अनुसरण का प्रसंग आ जावेगा क्योंकि सौगत के मत में प्रमाण प्रमेय व्यवहार काल्पनिक है। उनके यहाँ वचनों को वक्ता के अभिप्राय मात्र का सूचक माना है। यदि कहो कि वेदवाक्य के काल में वह विषय स्वभाव विद्यमान है, तब तो वह नियोग वाक्य का अर्थ नहीं हो सकेगा क्योंकि वह तो यागादि को निष्पादन करने के लिये हुआ है और निष्पन्न हुये यागादि का पुरुषादि के समान पुनः निष्पादन करना बनता नहीं है। अर्थात् जिस प्रकार निष्पन्न परमबह्म पुरुष का संपादन करना नहीं बन सकता उसी प्रकार निष्पन्न यागादिकों का संपादन करना भी नहीं बन सकेगा। यदि आप कहें कि उस यागादि का किंचित-कुछ अनिष्पन्न रूप है इसलिये उस शेष अनिष्पन्न के निष्पादन के लिये नियोग है तब तो यागादि विषय स्वभाव नियोग भी अनिष्पन्न है इस प्रकार से वेदवाक्य का अर्थ कैसे होगा? स्वयं असन्निहित-भावी विषय स्वभाव, कल्पनारूढ़ को
मानने पर वही सौगत मत में आपका प्रवेश हो जावेगा, उसका रोकना दुनिवार है। "फल स्वभाव नियोग है" यह पक्ष भी तुम्हें स्वीकार नहीं करना चाहिये क्योंकि वह नियोग फल स्वभाव भी घटित नहीं होता है। स्वर्गादि के फल नियोग नहीं है अन्यथा फलांतर की कल्पना का प्रसंग आ जावेगा क्योंकि निष्फल-फल रहित नियोग का अभाव है। एवं फल स्वभाव नियोगवादियों के यहाँ फलांतर को नियोग मानने पर उसके लिए अन्य फल की कल्पना करने पर अनवस्था
1 नियोगः । 2 बुद्धिपरिणतस्य । वर्तमानकाले कल्पितविषयस्य । 3 विषयस्वभावनियोगस्य। 4 प्रमाणप्रमेयव्यवहारस्य काल्पनिकत्वात्सौगतमते । वक्त्रभिप्रेतमात्रस्य सुचकं वचनं त्वितीदं हि सौगतमतम् । 5 वेद। 6 यागादिविषयो नियोगो यागमुत्पादयति । 7 आकाशादि । 8 यागादिनिष्पादनं वाक्यकाले जातमेव । १ पुरुषादिविषयस्य । 10 यागादेः। 11 यागादिविषयस्वभावः । 12 भाविनो विषयस्य। 13 पूर्वोक्तः। 14 फलस्वभावस्य । 15 अन्यथा।
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