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विधिवाद ]
प्रथम परिच्छेद
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भिधायित्वे 'ऽन्य' परिहारेण क्वचित्प्रवृत्तिनिबन्धनतापायाद्विधिरपि शब्दार्थो मा भूत् । 'परमपुरुषस्यैव 'विधेयत्वात्तदन्य' स्यासम्भवान्नान्यपरिहारेण प्रवृत्तिरिति चेत् कथमिदानीं "दृष्टव्यो रे यमात्मे" "त्यादिवाक्यान्नैरात्म्यादि " परिहारेणात्मनि 12 प्रवृत्तिर्नेरात्म्यादिदर्शनादीनामपि प्रसङ्गात् । "नैरात्म्यादेरनाद्यविद्योपकल्पितत्वान्न तद्दर्शनादौ प्रवृत्तिरिति चेत् कथमन्यपरिहारेण प्रवृत्तिर्न भवेत् ? "परमब्रह्मणो " विधिरेवान्य" स्यानाद्य
भाट्ट - यदि ऐसा कहो तब तो वस्तु स्वरूप का कथन करने वाले भी शब्द अन्यापोहका कथन करने वाले नहीं हैं ऐसा मानने पर तो आपके यहाँ ब्रह्म को छोड़कर अन्य कोई है ही नहीं अतः अन्य का परिहार करके वे शब्द कहीं पर भी प्रवृत्ति के निमित्त नहीं हो सकेंगे इसलिये विधि भी शब्द का अर्थ मत होवे । अर्थात् विधि तो प्रवर्तनस्वभाव वाली ही है तो फिर अन्य का निषेध करके एक ब्रह्म के विषय में ही नियम रूप से वह प्रवृत्ति कैसे करावेगी ?
विधिवादी - परम पुरुष ही विधेय है क्योंकि ब्रह्म को छोड़कर कोई भिन्न वस्तु है ही नहीं इसलिये अन्य का परिहार करने से विधि में प्रवृत्ति ही नहीं होगी ।
भाट्ट - यदि ऐसा कहो तो अन्य का परिहार करके प्रवृत्ति के न होने रूप समय में "दृष्टयोsरेऽयमात्मा श्रोतव्योऽनुमतव्यो निदिध्यासितव्यः " अरे मैत्रेय ! यह आत्मा देखने योग्य है, श्रवण करने योग्य है, अनुमनन करने योग्य है और ध्यान करने योग्य है, इत्यादि वाक्यों से नैरात्म्य दर्शनादिकों का परिहार करके आत्मा में प्रवृत्ति कैसे हो सकेगी ! अन्यथा - यदि नैरात्म्यादि दर्शन का परिहार नहीं मानोगे तो उनका भी प्रसंग आ जावेगा अर्थात् नैरात्म्यादि सिद्धान्त भी मानने पड़ेंगे ।
भावार्थ - यहाँ यदि आप वेदांती के वचन केवल विधि वाक्य को ही कहते हैं, निषेधवाक्य को नहीं कहते हैं तो फिर आप क्षणिकवाद, शून्यवाद आदि का परिहार भी कैसे करेंगे ? पुनः आपके ब्रह्मवाद में शून्यवाद आदि आ घुसेंगे, आप किसी को भी नहीं रोक सकेंगे ।
वेदांती - नैरात्म्यादि दर्शन तो अनादिकालीन अविद्या से ही उपकल्पित हैं अतः उन दर्शनों में शब्द की प्रवृत्ति नहीं होती है ।
1 विधेयत्वात्प्राप्यत्वात् । 2 अन्यद् ब्रह्मव्यतिरिक्तं वस्तु नास्ति विधिवादिनो मते । 3 अनियामकत्वाद् विधेः प्रवर्तनस्वभावत्वादन्यपरिहारेण क्वचित् प्रवृत्तिः कथं स्यात् । ( ब्या० प्र०) 4 विधिवादी । 5 प्राप्यत्वात् । 6 परमपुरुषात्किञ्चिद्भिन्नं वस्तु नास्ति यतः । 7 faat I 8 अन्यपरिहारेण प्रवृत्त्यभावप्रतिपादनकाले । 9 दृष्टव्यः श्रुतवाक्येभ्यो मंतव्यश्चोपपत्तितः । मत्वा च सततं ध्येय एते दर्शनहेतवः । इति स्मृति वाक्यं । ( ब्या० प्र० ) 10 दृष्टव्योयमात्मा श्रोतव्योनुमन्तव्यो निदिध्यासितव्य इति श्रुतिः । 11 सोगत आह । - हे विधिवादिन् अन्यथा नैरात्म्यादि परिहाराभावे पुरुषे शब्दस्य प्रवृत्तिर्घटते चेत्तदा नैरात्म्यादिदर्शनादीनामपि प्रवृत्तिर्घटताम् । 12 अन्यथा | 13 विधवाद्याहानात्मवादिकम् । – अनाद्यज्ञानोपरूढं यतस्तस्मान्नैरात्म्यादिदर्शनश्रवणादी प्रवृत्तिर्न घटते । 14 नैरात्म्य | 15 भाट्टः । 16 विधिवादी (परब्रह्मणः ) । 17 विधानम् । 18 अन्यापोहस्य |
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