________________
४८ ]
अष्टसहस्री
[ कारिका ३(१०) भोग्य-भविष्यत् रूप ही नियोग है। (११) पुरुष ही नियोग है। इन एकादश पक्षों का विचार करने से वह नियोग सिद्ध नहीं होता है यथा--
(१) "शुद्ध कार्य नियोग है" यह पक्ष असंभव है क्योंकि "यजेत स्वर्गकामः" इस प्रकार प्रेरणा और नियोज्य से रहित नियोग असंभव है।
(२) जो आपने कहा था " शुद्ध प्रेरणा ही नियोग है" क्योंकि नियोज्य–पुरुष और उसका फल-स्वर्ग उससे रहित प्रेरणा प्रलाप मात्र है।
(३) "प्रेरणा सहित कार्य ही नियोग है" इसमें भी नियोज्य मनुष्य के न होने पर नियोग ही असम्भव है।
(४) "कार्य सहित प्रेरणा" का इसी से निरसन हो गया।
(५) “कार्य को ही उपचार से प्रवर्तक कहना" भी असार है क्योंकि पुरुषादि से निरपेक्ष कार्य (यज्ञ) में प्रवर्तक का उपचार ही असम्भव है ।
(६) "कार्य और प्रेरणा का संयोग" अर्थ करने पर तो इन दोनों सम्बन्धी से भिन्न सम्बन्ध यदि सम्बन्धी से निरपेक्ष है तो वह नियोग रूप से नहीं घटता है।
(७) "उन दोनों का समुदाय" अर्थ कहने पर वह उससे भिन्न है या अभिन्न ? इत्यादि विकल्पों से दूषित हो जाता है।
(6) "कार्य और प्रेरणा से रहित नियोग" विधिवाद में ही प्रविष्ट हो जाता है। (६) "यंत्रारूढ़ नियोग वचन ही नियोग है" इस कथन से भी विधिवाद ही आता है।
(१०) भोग्य को नियोग कहने से वेदवाक्य और प्ररणारूप वाक्य का धर्म इन दोनों से रहित 'भोग्य-स्वर्ग की व्यवस्था ही असम्भव है ।
. (११) "पुरुष का स्वभाव नियोग है" ऐसा अर्थ करने पर तो पुरुष का स्वभाव शाश्वतिक होने से नियोग भी शाश्वत हो जावेगा।
इस प्रकार से ११ विकल्पों में कहा गया नियोग सिद्ध नहीं होता तथा इनमें आठ विकल्प और उठते हैं कि ये ग्यारहों विकल्प रूप नियोग प्रमाण है या प्रमेय, उभय रूप है या अनुभय रूप तथा शब्द व्यापार रूप है या पुरुष व्यापार रूप, दोनों के व्यापार रूप हैं या दोनों के व्यापार से रहित ?
यदि आप प्रथम पक्ष लेवें तो विधिवाद आ जावेगा क्योंकि प्रमाण तो चिदात्मक है। यह आत्मा "दृष्टव्यः, श्रोतव्यो, निदिध्यासितव्यः" इत्यादि वाक्यों के सुनने से अवस्थांतर से विलक्षण "मैं प्रेरित हुआ हूँ" ऐसी अहंकार बुद्धि से आत्मा ही प्रतिभासित होती है और वही विधि है । यदि दूसरा पक्ष लेवें तो प्रमेय को ग्रहण करने वाला कोई प्रमाण मानना होगा अन्यथा प्रमाण के अभाव में प्रमेय कैसे रहेगा? एवं प्रमेय रूप नियोग पुरुष से भिन्न न होने से आप वेदान्ती बन जावेंगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.