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३० ]
अष्टसहस्री
[ कारिका ३
(१०) 'भोग्यरूपो नियोग इत्यपरः।
ममेदं भोग्यमित्येवं भोग्यरूपं प्रतीयते। ममत्वेन च विज्ञानं भोक्तर्येव व्यवस्थितम् ॥१२॥ स्वामित्वेनाभिमानो हि भोक्तुर्यत्र भवेदयम् । भोग्यं तदेव विज्ञेयं तदेवं स्वं निरुच्यते ॥१३॥ *साध्यरूपतया येन ममेदमिति गम्यते । तत्प्रसाध्येन रुपेण भोग्यं स्वं व्यपदिश्यते ॥१४॥ सिद्धरूपं हि योग्यं न नियोगः स तावता। साध्यत्वेनेह भोग्यस्य प्रेरकत्वान्नियोगता' ॥१५॥
[ प्रमाणवातिकालंकार पृ० ३० ] (११) पुरुष एव नियोग इत्यन्यः ।
ममेदं कार्यमित्येवं मन्यते पुरुषः सदा। पुंस: कार्यविशिष्टत्वं नियोगोस्य च वाच्यता ॥१६॥ कार्यस्य10 सिद्धौ जातायां तद्युक्त:11 पुरुषस्तदा । भवेत्साधित इत्येवं पुमान् वाक्यार्थ उच्यते ॥१७॥
[ प्रमाणवातिकालंकार पृ० ३० ]
(१०) कोई कहते हैं कि भोग्यरूप-भविष्य में होने वाला जो भोग्य है वही नियोग है।
श्लोकार्थ-मेरा यह भोग्य है इस प्रकार से जो भोग्य का रूप प्रतीति में आता है और ममत्व रूप से जो विज्ञान है, वह भोक्ता में ही व्यवस्थित है ॥१२॥ जहाँ पर स्वामीपने से भोक्ता का अभिप्राय है उसी को भोग्य समझना चाहिये । इस प्रकार वह स्वकीय कहलाता है ॥१३॥ साध्य रूप से जिस पुरुष के द्वारा यह मेरा है, इस प्रकार से जाना जाता है, वह प्रसाध्य रूप से स्वकीय भोग्य कहलाता है ॥१४॥ और सिद्ध रूप भोग्य है वह नियोग नहीं है वह उतने साध्य रूप से इस वेदवाक्य में भोग्य का प्रेरक होने से नियोग रूप है ।।१५।।
भावार्थ-कार्य कर चुकने पर भविष्य में जो भोगने योग्य अवस्था होगी उसे भोग्य कहते हैं जैसे कि अपराधी को कठोर कारावास की आज्ञा के वचन सुनकर भोग्य रूप का अनुभव हो रहा है। जिस पदार्थ का जो स्वामी है उसके लिए वही पदार्थ भोग्य है अतः आत्मा का स्वरूप ही 'स्व' शब्द से कहा जाता है । आत्मा अपने स्वभावों का भोक्ता है। मेरे द्वारा यह कार्य साध्य है इस प्रकार से जान लेने पर निज स्वरूप भोग्य नियोग है किन्तु जो आत्मा का स्वरूप सिद्ध हो चुका है वह भोग्य नहीं है अपितु भविष्य में करने योग्य ज्योतिष्टोम आदि यज्ञों से विशिष्ट आत्मा का स्वरूप ही भोग्य है, वही नियोग है।
(११) कोई पुरुष-आत्मा को ही नियोग कहते हैं।
श्लोकार्थ- यह मेरा कार्य है इस प्रकार से पुरुष हमेशा मानता है वह पुरुष का कार्य विशिष्ट ही नियोग है और यही इसकी वाच्यता है ॥१६॥
1 भविष्यद्रूपमेव भोग्यं नियोग इत्याह । 2 अभिप्रायः । 3स्वकीयम् । 4 स्वर्गादिकं साध्यम् । 5 पुंसा। 6 वेदवाक्ये । 7 यतः। 8 यागादिलक्षणसम्पृक्तत्वम् । यज्ञकर्ता। भोग्यतामात्रेण । 9 नियोगः स्यादबाधितः इति वा पाठः । 10 यदि पुरुष एव नियोगस्तदा तस्य नित्यत्वात् कथं साध्यरूपो भवतीत्याशङ्कायामाह। 11 साध्यकार्यविशिष्टः ।
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