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अष्टसहस्री
विशेष सूचना
यद्यपि आगे नियोगवाद, विधिवाद एवं भावनावाद ये तीनों प्रकरण क्लिष्ट एवं नीरस हैं ये प्रकरण वेद से संबंधित हैं एवं इनमें व्याकरण का संबंध भी अधिक है तथापि भावार्थ और विशेषार्थ द्वारा उसे सरल एवं सरस बनाने का प्रयत्न किया गया है, फिर भी स्वाध्याय प्रेमी जनों को इन विषयों में रूचि न हो तो आगे चार्वाक, शून्यवादी के प्रकरण से स्वाध्याय करें । अनन्तर ये तीनों प्रकरण भी सरल मालूम पड़ेंगे । किन्तु इनके समान सारे ग्रंथ को ही कठिन समझकर स्वाध्याय न छोड़ें क्योंकि आगे-आगे इस ग्रंथ में प्रकरण सरल, सरस एवं अतीव रुचिपूर्ण हैं। स्थानस्थान पर पाठकों को स्वयं ही
अनुभव आता रहेगा।
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