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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
गया साथ ही व्यापार की कला में होशियार हो जाने के कारण उसने बहुत द्रव्योपार्जन भी कर लिया।
अनेक वर्ष बीत जाने के पश्चात् जब वह अतुल धन का स्वामी हो गया, उसने अपने गाँव लौटने का इरादा किया और अनेक नौकर-चाकरों के साथ रवाना हुआ। जिस समय वस अपने गांव के समीप पहुंचा, रात्रि हो चुकी थी चूकि वह बचपन में ही घर छोड़ गया था अतः घर ढूढने की दिक्कत के कारण पास ही बनी एक धर्मशाला में अपने भारी लवाजमे के साथ ठहर गया। उसने विचार किया कि प्रातःकाल होते ही अपने घर चला जाऊँगा।
मारे प्रसन्नता के उसे रात्रि को नींद नहीं आई अतः प्रातःकाल शीघ्र उठकर नित्य-कर्म से फारिग होने के लिये धर्मशाला से बाहर निकला। बाहर आने पर देखता क्या है कि एक दीन-हीन वृद्ध व्यक्ति बड़ी कठिनाई से धर्मशाला के आस-पास रात्रि में ठहरे हुए पशुओं का गोबर इकट्ठा कर रहा है । पर इसी बीच एक अन्य व्यक्ति आया और उस वृद्ध के इकट्ठे किये हुए गोबर को ले भागा । वृद्ध अत्यन्त कृशकाय और निर्बल था अतः कुछ भी विरोध नहीं कर सका किन्तु दु:ख के मारे हाय-ह य करता हुआ रोने लगा।
वास्तव में ही संसार में निर्बल व्यक्तियों को सभी सताते हैं, बलवानों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता। एक गुजराती कवि ने ठीक ही कहा है
सबला थी सहको बिए, नबला तेज न डाय ।
बाघतणो मांगे नहीं, भोग भवानी माय ॥ अर्थात्-बलवान से सब डरते हैं अत: निर्बल ही सताया जाता है । कोई प्रश्न करे कि ऐसा क्यों ? तो कवि एक बड़ा सुन्दर दृष्टान्त देकर उसे समझाता है कि और तो और, देवी भवानी भी डरके मारे शेर का भोग नहीं मांगती, अपितु बकरे और मुर्गे जैसे निर्बल प्राणियों का ही भोग चाहती हैं । आप लोगों में से भी किसी ने कभी नहीं सुना होगा कि देवी ने कभी शेर को जिबह करके चढ़ाने की मांग की हो । यह इसलिये कि शेर ताकतवर होता है अतः किसकी मजाल है जो उसे पकड़ कर उसका बलिदान कर सके।
तो मैं यह बता रहा था कि गोबर बीनने वाले निर्बल वृद्ध का गोबर अन्य व्यक्ति छीन ले गया और वह कोई वश न चलने के कारण रो पड़ा । विदेश से लौटकर आने वाला युवक समीप ही खड़ा यह देख रहा था। पूछ बैठा"बाबा ! जरा से गोबर के छिन जाने से रोते क्यों हो?"
वृद्ध दुःखी होता हुआ बोला-'बेटा ! मैं अत्यन्त वृद्ध हैं। कोई भी और काम नहीं कर पाता । केवल इस गोबर के कंडे बनाकर बेचता हूँ और उससे मिले हुए पैसे से किसी तरह आधा पेट अन्न खा पाता हूँ । अतः आज इस
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