Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 359
________________ ३४२ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग और उसने अपने माता-पिता से यह बात कही। माता-पिता ने इसके लिए इन्कार किया क्योंकि उसे प्राप्त करने के लिए बारह वर्ष तक ओंधे लटके रहकर साधना करनी आवश्यक थी। पर शंबूक माना नहीं और उसने खड्ग की साधना के लिए एक झाड़ी में ओंधे लटककर साधना प्रारम्भ कर दी। प्रतिदिन उसकी माता शूर्पनखा उसे आहार देकर आती है और शंबूक जंगल में ही रहता है । यहाँ जंगल कौन-सा ? 'उपशम' यानी ऊपर की शान्ति । तो शंबूक उधर तपस्या कर रहा है और इधर राजा दशरथ के पुत्र रामचन्द्रजी को वनवास होता है । आध्यात्मिक दृष्टि से दशरथ, क्षमा मादव, आर्जव आदि दस लक्षणों वाले धर्म को कहा गया है। जहाँ धर्मावतार राम का जन्म होगा वहां माता-पिता भी शुद्ध और सर्वोत्तम होने चाहिए । तो पिता दस लक्षणयुत धर्म और माता मानी गई है संवर भावना ! जिसे कौशल्या माता कहा जा सकता है। पाप क्रियाओं के रुकने पर संवर भावना आती है, दूसरे शब्दों में पाप-रूपी जल को रोकने के लिए पाल के समान काम करने वाली भावना संवर भावना कहलाती है । वह वहीं रहेगी जहाँ धर्म रहेगा। दशरथ की दूसरी रानी सुमित्रा थी। सुमित्रा यहाँ हम किसे कहेंगे ? सम्यक्त्व य नी श्रद्धा को। तो इस श्रद्धारूप सुमित्रा ने सत्य रूप लक्ष्मण को जन्म दिया । जहाँ श्रद्धा होगी सत्य अवश्य होगा । यहाँ ध्यान में रखने की बात है कि जहाँ धर्म होगा वहाँ सत्य होगा और जहाँ सत्य रहेगा वहाँ धर्म अनिवार्य है । सत्य को छोड़कर धर्म नहीं रहता और धर्म को छोड़कर सत्य नहीं रह सकता । इसीलिए धर्म रूप राम के साथ ही सत्य-रूपी लक्ष्मण भी वनवास में साथ गए और साथ ही रहे । एक बात और बताने की जो रह गई कि रामचन्द्रजी का विवाह सीता से हुआ था और यहाँ धर्मरूपी राम का विवाह किस के साथ हुआ। यह बात अगला पद्य बता रहा है सुमति सीता से धर्म राम का बहुत ठाट से विवाह भया । एक दिवस वो पिता हुक्म से तीनों ही संयम वन में गया । सत्य लक्ष्मण वो खड़ा पकड़कर सजल संबुक का सिर धाया। कुमति चन्द्रनखा कही पति सु, खर दूषण त्रिशिरा धाया । सत्य लक्ष्मण तब चढ़े सामने, उन तीनू कुलिया मारी धर्म दशहरा ॥ ५॥ धर्म रूपी राम का सुमति रूपी सीता के साथ विवाह बड़े ठाट-बाट से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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