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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
वे न गिरें । अनेक बार हम देखते हैं कि बिना देखे-भाले वे उपर से ही जूठन तथा राख आदि का गन्दा पानी सड़क पर फेंकती हैं और राहगीरों के वस्त्रों पर उनके छींटे उछल जाया करते हैं और झगड़े भी पैदा हो जाते हैं अतः कहने का अभिप्राय यही है कि अभी-अभी बताई हुई इन पांचों समितियों का मुनि को पूर्ण रूप से तथा गृहस्थों को भी यथाशक्ति विवेकपूर्वक पालन करना चाहिये । तभी हमारी क्रियाएँ शुद्ध बन सकेंगी तथा क्रियाओं के निर्दोष बनने से पाप-कमों का भार आत्मा पर कम चढ़ेगा। मनुष्य को कभी नहीं भूलना चाहिये कि सामायिक, उपवास, पौषध एवं अन्य त्याग-नियमों की अपेक्षा भी अपनी क्रियाओं में विवेक रखना अधिक आत्म कल्याणकारी है। इसके अभाव में धर्माराधन की बड़ी-बड़ी क्रियाएँ भी निष्फल साबित हो जाती हैं। *
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