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समय का मूल्य आँक
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प्रत्येक पल का सदुपयोग करना चाहिये क्योंकि जीवन क्षणिक है और न जाने किस दिन किस वक्त वह समाप्त हो सकता है । कहा भी है
दुम-पत्तए पंडुरए जहा, निवडइ राइगणाण अच्चए ।
एवं मणुयाण जीवियं समयं
गोयम ! मा पमायए ॥
उत्तराध्ययन सूत्र अ १० गा. १
कहा गया है - वृक्ष के ऊपर जो पीले पत्ते हैं वे कब तक ठहरने वाले हैं ? हवा का एक झोंका आते हो वे नीचे गिर जाते । इसी प्रकार मनुष्य का जीवन है जो किसी भी समय नष्ट हो सकता है । अतः हे गौतम! समय मात्र का भी विलम्ब आत्म-साधना में मत करो ।
जीवन को क्षणिकता का एक और उदाहरण उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्याय की दूसरी गाथा में दिया है
कुसग्गे जह ओसबिन्दुए, थोवं चिठ्टइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥
जिस प्रकार कुश के अग्रभाग पर जल का बिन्दु चमकता है | किन्तु उसकी चमक कितने समय तक ठहरती है ? सूर्य की एक किरण के पड़ते ही वह सूख जाती है । इसी प्रकार मनुष्य का जीवन अल्पकाल का है, अतः हे गौतम ! एक समय के लिए भी प्रमाद मत करो ।
वस्तुत: जिस प्रकार गौतम स्वामी का जीवन एक-एक पल करके बीत रहा था, उसी प्रकार हमारा जीवन भी एक-एक पल करके ही समाप्त होता जा रहा है और उन जैसे दिव्य पुरुष को भी जब भगवान ने चेतावनी दी भी तो हम किस गिनती में हैं ? गौतम स्वामी का तो प्रत्येक क्षण हो उच्चतम साधना में व्यतीत हो रहा था और आज हमारा जीवन किस प्रकार संसार के प्रपंचों में बीत रहा है, हम जानते ही हैं । इसीलिए उनकी अपेक्षा हमें इस चेतावनी की अनिवार्य आवश्कता है । अगर यह इसी प्रकार बीतता चला गया तो अन्त में पश्चात्ताप के अलावा क्या हाथ आएगा ? कुछ भी नहीं ।
एक हिन्दी के कवि का कथन है-
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जीवन एक वृक्ष है फानी, बचपन पत्त साख जवानी । फिर है पतझड़ खुश्क बुढ़ापा, इसके बाद है खतम कहानी ।
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