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२६० आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
गुणवानों से सद्गुण का गाते गाना ।
कर कर्म निर्जरा पाया मोक्ष ठिकाना ।। वस्तुतः ऐसे व्यक्ति ही कर्मों की निर्जरा करके मुक्ति-लाभ करते हैं । अतएव बन्धुओ ! हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जीवन अल्प है और सफर लम्बा है । इस थोड़े से काल में ही अगर हमने पूर्वकृत कर्मों की निर्जरा करके पुण्य कर्मों का भाता साथ में न लिया तो मंजिल तक पहुँचना कठिन ही नहीं, असम्भव हो जाएगा। इस संसार की छोटी-छोटी मात्राओं में तो हम रुपया-पैसा, भोजन सामग्री तथा अनेक प्रकार की अन्य वस्तुएँ लेकर रवाना होते हैं । तो फिर मोक्ष जैसी लम्बी यात्रा में ही अगर धर्म एवं पुण्यरूपी सामान साथ में लेकरं न चले तो मंजिल तक कैसे पहुंच सकेंगे? *
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