Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 343
________________ २७ जीवन को नियंत्रण में रखो धर्मप्रेमी बंधुनो, माताओ एवं बहनो ! भगवान महावीर ने मनुष्य जीवन को सार्थक करने के दो कारण बताए हैं । एक श्रावकधर्म और दूसरा साधुधर्म । यहाँ एक बात आपको ध्यान में रखनी चाहिए कि श्रावकधर्म और गृहस्थधर्म में बड़ा भारी अन्तर है। कहने में हम आप सभी को श्रावक कहते हैं, किन्तु वास्तव में आप सब श्रावक नहीं कहला सकते। पावक आप तभी कहला सकते हैं, जब कि श्रावक धर्म के लिए बनाए हुये नियम या व्रत अंगीकार करें। जब तक व्रत अंगीकार नहीं किये जाते और अंगीकार कर लेने पर उनका पालन नहीं किया जाता, तब तक अनेकानेक अनर्थ जीवन में घटने की आशंका बनी रहती है। टेढ़ी खीर आप सोचते होंगे कि श्रावक के व्रतों का पालन करना कौनसा कठिन काम है ? आखिर तो श्रावक भी हमारे जैसे गृहस्थ ही होते हैं। किन्तु ऐसा नहीं है, श्रावक धर्म का पालन करना भी टेढ़ी खीर है। कभी-कभी तो ऐसे प्रसंग आते हैं कि श्रावक को अपने प्राणों का बलिदान भी देना पड़ता है। सुदर्शन सेठ श्रावक थे किन्तु एक पत्नि व्रत के धारी होने के कारण उन्हें सूली की सजा दी गई थी। यह तो उनके धर्म का प्रभाव था कि सूली भी सिंहासन बन गई । अरणक भी श्रावक थे, पर देवता के द्वारा धर्म त्याग का कहने पर भी उनके इन्कार करने से उन्हें जहाज समेत जल में डूबने की नौबत आई । सती सुभद्रा भी श्राविका थी और उसके अपने धर्म और व्रतों का पूर्णतया पालन किये ज ने से घर-घर में गाई जाने वाली कलक की कह नी भी यश प्राप्ति का कारण बनी। कहने का अभिप्राय यही है कि श्रावक धर्म का फल तो प्राणी महान् यश और पुण्य के रूप में मिलता ही है किन्तु उनका पालन करने में कभी-कभा बड़ी विपत्तियाँ झेलनी पड़ती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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