Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 356
________________ विजयदशमी को धर्ममय बनाओ! ३३६ महामोह का सबसे बड़ा पुत्र है-'मिथ्या मोहनीय ।' रावण के दस मुखों के समान मिथ्यात्व मोहनीय के भी दस मुख हैं । वे क्या हैं ? दस प्रकार के मिथ्यात्व, यथाजीव को अजीव माने और अजीव को जीव माने, धर्म को अधर्म माने और अधर्म को धर्म म ने अमुक्त को मुक्त और मुक्त को अमुक्त तथा साधु को असाधु और असाधु को साधु मानना आदि दस प्रकार के मिथ्यात्व ही मिथ्यात्व मोहनीयरूपी रावण के दस मुह हैं। अब आप कहेंगे - रावण के तो बीस भुजाएँ थीं मिथ्यात्व मोहनीय के बीस भुजाएँ कौन-कौन सी हैं ? उत्तर यही है कि जहाँ मिथ्यात्व रहेगा वहाँ आश्रव भी रहेंगे । आश्रव यानी पाप के आने के रास्ते ! बीस प्रकार के आश्रव ही उसकी बीस भुजाओं के समान हैं। इसके अलावा रावण जैसा धोखेबाज और करटी था उसी प्रकार 'मिथ्यात्व मोहनीय' भी काट विद्या की खान अब रावण के दूसरे भाई विभीषण का नम्बर आता है । विभीषण ने बार-बार अपने भाई को समझाया था-'सीता को वापिस कर दो क्योंकि दूसरे को वस्तु चुरा लाना और अपने पास रखना अधर्म है।" तात्पर्य यह है कि विभीषण न्याय मार्ग पर चलता था और इसी प्रकार सम्यक्त्व मोहनीय भी होता है जो मानव को प्रशस्त मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। अब तीसरा भाई मिश्र मोहनीय है जो कभी इधर और कभी उधर विचारों की तरंगें बहाता है। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार कुभकर्ण था जो रावण के समीप जाता तो रावण की हाँ में हाँ मिलाता था और जब विभीषण के पास जाता था उसे भी प्रसन्न रखने को कोशिश करता था। आप यह कहावत भी कहा करते हैं-- 'गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास । इसी प्रकार मिश्र मोहनीय की प्रकृति है जो ढुलमुल बनी रहती हैं। अब कवि आगे कहते हैं परपंच नाम मंदोदरी नामे, मिथ्यामोह रावण रानी । विषय इन्द्रजीत अहं मेघवाहन मिथ्या रावण के सुखदानी ॥ कुमति नाम चन्द्रनखा बहन है, कठिन क्रोध खर के माही। दूषण दूषण तीन शल्य त्रिशिरा, ए दोनु ही उसके भाई ।। संज्वलतिक चन्द्रनखा शबुक कछ एक आयो होशियारी धर्म दशहरा...॥३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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