Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 355
________________ ३३८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग हुई है। यानी लालच ही लंका है। लंका में रावण का पिता रत्नश्रवा राक्षस राज्य करता था । आध्यात्मिक दृष्टि से इस लालच रूपी लंका में महामोह रूपी रत्नश्रवा-राक्षस रहता है। रत्नश्रवा की पत्नी या रावण की माता केकसी थी, और यहाँ महामोह रूपी राक्षस की रानी क्लेश है । जहाँ महामोह रहेगा वहाँ क्लेश तो रहेगा ही। मोहका दूसरा नाम अज्ञान भी है और जहाँ अज्ञान होगा वहाँ क्लेश न हो यह संभव नहीं है । क्योंकि अज्ञानी कभी सही मार्ग पर नहीं चलता और सही मार्ग पर न चलने वाला समाज के व्यक्तियों की हानि करके क्लेश का कारण बनता है। किसी ने कहा भी है निपट अबुध समझ कहाँ, बुध-जन वचन-विलास । कबहू भेक न जानहीं, अमल कमल की बास ॥ जो व्यक्ति महामूर्ख होता है वह विद्वानों के वचनों की उपयोगिता और सुन्दरता को नहीं समझ साता जिस प्रकार मेंढ़क निर्मल कमल की बास को (सुगन्ध को)। तो जहाँ महामोह अथवा अज्ञान होता है वहाँ धर्म, नीति तथा न्याय आदि नहीं रह पाते और इनके विरोधियों के कारण क्लेश का साम्राज्य बना रहता है। ___ कवि ने अपने आगे के पद्य में बताया है कि महामोह राजा के तीन पुत्र हैं, जिस प्रकार रावण, विभीषण और कुभकर्ण तीन पुत्र रत्नश्रवा राक्षस के थे। पद्य इस प्रकार है मिथ्यामोहनी उसका फर्जद, दस मिथ्या दस आनन है। बीस आश्रव की भुजा हैं उसके, कपट विद्या की खानन है। सम्यक्त्व मोहनी विभीषण दूजा, नंदन सो कुछ है न्यायी। मिश्र मोहनी कुभकर्ण ए, सचपिच बात में अधिकाई । महामोह के ए तिहं नंदन, समझो सुगुणा नर नारी धर्म दशहरा ॥२॥ कवि ने रत्नश्रवा के रावण, विभीषण और कुभकर्ण जैसे पुत्रों की महामोह के मिथ्या मोहनीय, सम्यक्त्व मोहनीय एवं मिश्र मोहनीय से बड़ी सुन्दर उपमा दी है । बताया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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