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जीवन को नियन्त्रण में रखो
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हैं । वे भली-भाँति जान लेते हैं कि जब तक इन समस्त दुःखों की जड़ राग और द्वेष को पराजित नहीं किया जाएगा, तब तक आत्मा को वास्तविक सुख की प्राप्ति नहीं हो सकेगी और न ही उसे अपने शुद्ध स्वरूप को उपलब्धि ही होगी। ___ इसीलिये मुमुक्षु जीव सांसारिक प्रलोभनों को जीतने के लिये अपनी शक्ति के अनुसार अणुव्रतों या महाव्रतों को धारण करके त्याग और तपस्यामय जीवन व्यतीत करते हैं । आत्मा-साधना के इस मार्ग पर अगर वे दृढ़तापूर्वक चलते हैं तो राग-द्वेष का नाश होकर वीतराग-दशा की प्राप्ति होती है और फिर उस आत्मा को सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी होने में देर नहीं लगती।
अतएव बन्धुओ, अगर हमें भी अपनी आत्मा का कल्याण करना है तो यथाशक्ति व्रत-नियमों को अपनाना चाहिये ताकि हमारा जीवन संयमित बन सके तथा दिन-दिन हमारी आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप की ओर अग्रसर हो सके।
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