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वमन को वाञ्छा मत करो २७६
रथनेमि ने बहुत सोचा और विचारा कि ऐसी वस्तु क्या हो सकती है जो संसार के समस्त प्राणियों को प्रिय हो ? अन्त में उसे यह सूझा कि गौ का दूध ऐसी वस्तु है जो संसार के प्रत्येक प्राणी के लिये प्रिय और हितकर होता है । यह विचार अते ही वह रत्न जड़े कटोरे में शुद्ध गाय का दूध राजीमती को भेंट में देने के लिये ले आया ।
राजीमती ने रथनेमि की भेंट देखकर " तुम मेरे लिये वास्तव में बड़ी सुन्दर भेंट ताकि मैं भेंट का प्रयुत्तर दे सकूँ ।"
प्रसन्नता व्यक्त की और कहालाए हो, पर तनिक देर ठहरो
रथ बडा प्रसन्न हुआ और इस आशा से वहाँ बैठा रहा कि उसकी सौगात के उपलक्ष में राजीमती विवाह के लिये हाँ कहेगी । राजीमती कटोरा उठाकर अन्दर चली गई और दूध पीने के पश्चात् कुछ ऐसी दवा खाई जिससे उसे वन हो गया । उसने उस रत्न जड़ित कटोरे में ही वमन किया और उपे वहाँ लाई जहाँ रथनेमि बैठा हुआ था, पास आकर बोली - " रथनेमि ! अगर मुझसे तुम्हें सच्चा प्यार है तो इसे पी ज ओ ।'
रमने यह सुनकर बड़ा चक्ति हुआ और क्रोधित भी। लाल आँखें " करता हुआ बोला - "क्या वमन की हुई वस्तु भी पीने योग्य रहती है ? यह तो मेरा सरासर अपमान है ।"
थकी बात सुनकर राजुल मुस्कराती हुई बोली - "भाई ! मैं भी तो तुम्हारे बड़े भाई के द्वारा त्यागी हुई अर्थात् वमन की हुई स्त्री हैं । अगर तुम मुझे ग्रहण कर सकते हो तो इस मेरी वमन की हुई वस्तु को क्यों नहीं ग्रहण कर सकते ।"
राजुल की यह बात सुनते ही रथनेमि को होश आ गया और उसने अपनी इच्छा को धिक्कारते हुए सोचा - ' सचमुच ही मैं वमन किये हुए को ग्रहण कहना चाहता था । घोर पश्चात्ताप करते हुये वह वहाँ से उलटे पैरों लौट गया और प्रवज्या ग्रहण करके साधु बन गया। इधर राजीमती ने भी अपने पति नेमिनाथ का अनुसरण करते हुए संयन अंगीकार कर लिया । उसने सोच लिया कि मुझे भी इस संसार में रहकर अब क्या करना है ?
कुछ समय बीत गया और राजुल दृढ़त पूर्वक करती रही । किन्तु एक बार अजीब संयोग आ राजीमती अन्य साध्वियों के साथ विचरण कर रही थी कि एक पहाड़ी स्थान
अपने संयम का पालन उपस्थित हुआ । सती
पर घनघोर वर्षा बरसने लगी । वर्षा के कारण साध्वियां भींग तो गई ही, एक दूसरे से बिछुड़ भी गई । राजमती ने भी वर्षा से बचने के लिये एक
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