Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 322
________________ काँटों से बचकर चलो ३०५ परिणामस्वरूप आलस्य और प्रमाद के कारण आपकी तोंद निकल आती है क्योंकि दौलत पाने के पश्चात् आप फिर कोई भी परिश्रम कार्य तो करते ही नहीं हैं अतः गद्दी पर बैठे बैठे तोंद नहीं बढ़ेगी तो और क्या होगा? ___ अब इस दौलत की दूसरी लत भी आप जान लीजिये ! अभी मैंने इसके आने का परिणाम बताया था अब जाने का परिणाम देखना है । वह यही है कि जब यह जाती है तो पेट में लात मार कर जाती है जिससे मनुष्य कुबड़ा हो जाता है । सुनकर आपको आश्चर्य होगा, किन्तु बात सही है । जब लक्ष्मी चली जाती है तो उससे रहित व्यक्ति को पेट भर अन्न भी खाने को नहीं मिलता तथा पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करते-करते तथा पैसे की प्राप्ति के लिए चिन्ता करते-करते बह युवावस्था में भी वृद्ध के समान झुक जाता है अर्थात् कुबड़े के समान दिखाई देने लगता है। पंचतंत्र में एक स्थान पर कहा भी है : "जिनके पास दौलत है वे यदि वृद्ध भी हो चुके हैं तो जवान हैं, और जो दौलत से रहित हैं वे जवान होते हुए भी वृद्ध हैं।" तो बन्धुओ, इस दौलत या टके की महिमा अवर्णनीय है। जब तक यह पास में रहती है, तब तक तो सारी दुनिया और सभी सुख व्यक्ति के कदमों में लोटते हैं सभी उसे मेरा-मेरा कहकर सम्मान देते हैं। कहा भी है : टका करे कुलहूल, टका मिरदंग बजावै , टका घड़े सुखपाल, टका सिर छत्र धरावै ॥ टका माय अरु बाप, टका भयन को भैया । टका सास अरु ससुर, टका सिर लाड़ ल.या ॥ वस्तुत: जब तक टका पास में रहता है मनुष्य के सुखों का पार नहीं रहता और व्यक्ति अभिमान के नशे में चूर होकर निर्धनों पर अत्याचार करता है, उन पर नाना प्रकार से अपना बड़प्पन और अधिकार जमाने के लिए तैयार रहता है। पर ऐसा अधिकार सदा टिकनेवाला नहीं होता। आप लोगों के लिए ही यह बात नहीं है । हम लोगों के लिए भी यही नियम है । मान लीजिये-आचार्य, उपाध्याय प्रवर्तक या उपप्रवर्तक कोई भी पदवीधारी मुनि हैं, अगर वह छोटे सन्तों को दबाना चाहते हैं तो उनके अधिकार और पाकर ये भी टिक नहीं सकतीं। ___ अधिकार में चार अक्षर हैं - अ, धि, का, और र । अगर अधिकार पाकर व्यक्ति मर्यादा में रहता है तो उसका अधिकार भी कायम रहता है । जैसे राम थे। उन्होंने अधिकार प्राप्त किया किन्तु फिर भी मर्यादा में रहे तो आज भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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