Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 329
________________ ३१२ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग बनाना चाहता है तो बहुत सोच-विचार कर तथा संभल-संभल कर चल । त्याग और तपस्यामय इस आत्म-साधना के मार्ग में समस्त सांसारिक सुख रूपी कांटे जो कि आगे चलकर असह्य पीड़ा पहुंचाने वाले होते हैं, बिछे हुए हैं। अतः बहुत सोच विचारकर तथा सजग होकर इस पर चल । अन्यथा अगर ये चुभ गए तो जन्म-जन्मान्तर तक पाप कर्म बनकर आत्मा में चुभते रहेंगे। इस स्थूल पृथ्वी पर कुछ देर चलने के लिये भी कहा गया है। "उपानत् मुखभंगो वा, दूरतो वा विवर्जनम्।" __उपानत् कहते हैं जूती को। भूमि पर चलने के लिए आप या तो जूनी पहनकर अपने पैरों की रक्षा कर सकते हैं, अथवा काँटों भरा मार्ग छोड़कर अन्य रास्ते पर गमन करके भी अपने पैरों का बचाव कर सकते हैं। तो मोक्ष प्राप्ति के लिये भी इसी प्रकार सावधानी से चलना पड़ेगा। या तो घर में रहकर सुख-भोग भोगते हुये भी उनके प्रति आसक्ति और प्रलोभन रूपी कांटों से बचे रहना पड़ेगा अथवा इस मार्ग को छोड़कर त्याग, तपस्या, नियम तथा इन्द्रिय संयम रूपी साधना का मार्ग अपन ना होगा। इस मार्ग पर चलने से काँटों का भय नहीं रहेगा तथा प्रत्येक व्यक्ति निर्भय होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकेगा। __हम साधुओं को यही मार्ग अपनाना पड़ता है । गौतमस्वामी भी समस्त सांसारिक भोग-रूप कांटों से बचने के लिये सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र से युक्त होकर इस मार्ग पर चल पड़े थे। फिर भी भगवान ने उन्हें पुनः पुनः आदेश दिया कि हे गौतम ! प्रबुद्ध होकर संयम मार्ग पर चलो तथा पापों से बचते हुए गांव, नगर या वन में जहाँ चाहो शांति से विचरण करो। - गांव और नगरों में जो प्रबुद्ध व्यक्ति विचरण करता है वह स्वयं तो शांति और संयमपूर्वक अपने आत्म-साधना के मार्ग पर चलता ही है, साथ सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों को भी सही मार्ग सुझाता है तथा उन्हें समझा देता है कि आत्म चैतन्य स्वरूप है। प्रबुद्ध व्यक्ति अज्ञानियों को बता देता है कि संसार के प्रत्येक जीव की आत्मा के समन शक्ति है और प्रत्येक में परमात्मा बनने की क्षमता है। अलग से उसे मन्दिरों, मसजिदों, गिरजाघरों या अन्य धर्मस्थानों में खोजना वृथा है । ये सब तो मार्ग हैं जो एक ही स्थान पर जिसे हम मोक्ष कहते हैं, पहुंचा सकते हैं। किसी शायर ने भी कितनी सुन्दर बात कही है काबे जाना भी तो बुतखाने से होकर जाहिद । दूर इस राह से अल्लाह का घर कुछ भी नहीं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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