________________
३१६
आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
राजा कलाकार की बात सुनकर दंग रह गए और आँखें फाड़-फाड़कर पुनः उन मूर्तियों की ओर बारी-बारी से देखने लगे। बहुत ध्यान से देखने पर भी उन्हें उनमें कोई अन्तर दिखाई नहीं दिया। एक-सा रंग, एक-सा रूप, एक-सी बनावट और एक-सी नक्काशी उन्हें तीनों में दिखाई दे रही थी। सोचने लगे आखिर एक कोड़ी, एक रुपया और एक लाख रुपये जैसा अन्तर इन समान मूर्तियों में किस प्रकार है ? जब उनकी समझ में किसी भी तरह यह अन्त नहीं मालूम हुआ तो कलाकार से ही यह फर्क बताने के लिये कहा।
कलाकार ने कहा-"महाराज ! एक डोरा मँगवा दीजिये, मैं अभी आपको इन में रहा हुआ अन्तर बताए देता हूँ।" इशारा करते ही डोरा आ गया। अब कलाकार ने तीनों सुन्दर मूर्तियाँ राजा के सामने रखी और एक मूर्ति के कान में डोरा डाला। डोरे का अगला हिस्सा मूर्ति के दूसरे कान में से निकल गया। यह दिखाकर कलाकार बोला--महाराज ! यह मूर्ति केवल एक कौड़ी के मूल्य की है । वह इस प्रकार कि यह मूर्ति उस व्यक्ति के समान है जो हित शिक्षा या सदुपदेश को इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देता है।
अब दूसरी मूर्ति की परीक्षा करने की बारी आई । कलाकार ने उस मूर्ति के कान में भी होरा डाला। उस दूसरी मूर्ति के कान में डाला हुआ डोरा मूर्ति के मुंह से बाहर निकला । यह दिखाकर शिल्पी बोला--महाराज ! यह मूर्ति एक रुपये के कीमत की है, क्योंकि यह ऐसे मनुष्यों का प्रतिनिधित्व करती है जो उत्तम बातों को सुनकर दूसरे कान से तो नहीं निकालते पर जबान से कहकर भूल जाते हैं। राजा मूर्तियों के गुण जानकर चकित और प्रपन्न हो रहे थे। अब उनकी उत्सुकता तीसरी मूर्ति का गुण जानने में बढ़ी कि इस एक लाख रुपये के मूल्य की मूति में ऐसा कोनसा गुण है ? उन्होंने कलाकार से शीघ्रतापूर्वक उस मूर्ति का गुण बताने के लिये कहा ।
शिल्पकार ने पुनः डोरा उठाया और तीसरे नम्बर की मूर्ति के कान में डाला राजा और समस्त दरबारी बड़ी व्यग्रता के साथ मूर्ति पर दृष्टि गड़ाए हुए थे कि क्या रहस्य अब सामने आनेवाला है ? सबने देखा-- कलाकार के द्वारा मूर्ति के कान में डाले हुए डोरे का मुंह कहीं से भी बाहर नहीं निकला। राजा ने इसका कारण पूछा। .
कलाकार ने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया-महाराज ! इस मूर्ति के कान में डाला हुआ डोरा न कान में से बाहर निकलता है और न मुह से । यह सीधा इसके पेट में उतर गया है। इसीलिये इसका मूल्य एक लाख
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org