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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
संयमी बनने के पश्चात् एक बार वे विचरण करते हुए वेश्याओं के मुहल्ले में जा पहुंचे । ऊपर की ओर देखा तो दिखाई दिया कि झरोखों में से दो वेश्याएं झांक रही है । एक ने मुनि से कहा--"मुनि जी, आप इधर आए तो हैं किन्तु कुछ धन भी आपके पास है या नहीं ?"
इतने में दूसरी बोल पड़ी--"इनके पास धन कहाँ पड़ा है ? देखती नहीं है स्वयं ही तो झोली में काठ के बर्तन लेकर भिक्षा मांगते हुए फिर रहे हैं ।" ____ नंदिषेण मुनि ने यह बात सुनी तो उन्हें क्रोध आ गया और उसी समय अपनी लब्धि का प्रयोग करके उन्होंने बाहर करोड़ सोनयों की वर्षा वेश्या के आँगन में करवादी तथा उन्हें लेने के लिए वेश्या को कह दिया।
किन्तु वेश्या बोली--"महाराज, मैं मुफ्त का पैसा नहीं सकती। अगर आपको मुझे इन्हें देना है तो आपको भरे यहाँ रहना पड़ेगा।" और मुनि नंदिषण को वहाँ रहना पड़ा । किन्तु इतने पर भी उनका नियम था कि वे प्रतिदिन दस व्यक्तियों को प्रतिबोध देने के पश्चात् ही अपने मुह में अन्न व जल डालते थे।
धीरे-धीरे नंदिषेण को वेश्या के यहाँ रहते हुए बारह वर्ष व्यतीत हो गये । एक दिन वे नौ व्यक्तियों को ही प्रतिबोध दे पार थे कि दिन बहुत चढ़ गया और भोजन नहीं कर पाए क्योंकि दसवां व्यक्ति उन्हें प्रतिबोध देने के लिये मिला ही नहीं ।
यह देखकर वेश्या जो कि यह समझने लगी थी कि अब ये मुझे छोड़कर कहाँ जा सकते हैं, ताना देती हुई बोली--मुनि जी ! प्रतिबोध देने के लिये दसवाँ कोई अन्य व्यक्ति नहीं मिलता तो तुम स्वयं ही दसवें क्यों नहीं बन जाते ? वेश्या का यह कहना ही था कि नंदिषेण उसी क्षण उठ खड़े हुए और यह कहते हुए चल दिये--'हाँ, यही बात ठीक है।" ___कहने का आशय यही है कि त्यागे हुए पदार्थों को तो फिर ग्रहण किया जा सकता है किन्तु उत्तम से उत्तम पदार्थ का भी वमन करने के पश्चात् उसे कोई ग्रहण नहीं करता । भगवान के लिए इसीलिए कहा गया है कि उन्होंने चारों कषायों का जो कि निंदनीय हैं, वमन कर दिया था। वमन कर देने के पश्चात् उनका सेवन नहीं किया अतः वे संसार-सागर को पार कर गए। __ पतन का तीसरा कारण बताया है-इन्द्रियों के विषय में आसक्त रहना। जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाता है। उसका नाना प्रकार से पतन होता है जो अनन्त वेदनाओं का कारण बनता है। कहा भी है
__ "आपदाम् प्रथितः पंथा इन्द्रियाणामसंयमः ।"
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