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आनन्द प्रबचन : तृतीय भाग
संत ने हँसकर कहा 'भाई ! उस वक्त तक मैं स्वयं ही गुड़ खाता था अतः गुड़ खाना छोड़ने के बाद ही मैंने तुम्हारे पुत्र को न खाने के लिये उपदेश दिया था । क्योंकि जिन बातों को मनुष्य स्वयं आचरण में न लाए उनके लिये उपदेश देने पर उस उपदेश का कोई असर नहीं होता । स्वयं त्यागवृति अपनाने के बाद ही त्याग का उपदेश दिया जाना चाहिये और वही उपदेश औरों पर असर करता है ।
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वस्तुतः अगर कोई व्यक्ति स्वयं तो गलत मार्ग पर चल रहा है पर दूसरे को अन्य सही मार्ग पर चलने के लिये कहेगा तो सुनने वाला बताने वाले की बात कैसे मानेगा ? वह तभी उस मार्ग को सही समझेगा जबकि बताने वाला स्वयं भी उस सच्चे मार्ग पर चल रहा होगा । इसी प्रकार तत्वों को जानने वाला तत्वज्ञ ही औरों को बोध दे सकेगा अज्ञानी व्यक्ति नहीं ।
उदाहरण स्वरूप एक ज्ञानी व्यक्ति अगर ओरों से कहे कि तुम क्रोध मत किया करो तो सुनने वाले उसकी बात पर कब ध्यान देंगे ? वे तभी उसकी बात मानेंगे जबकि उपदेश देने वाला व्यक्ति क्रोध तथा अन्य कषायों को जीत लेगा । वह किसी के के द्वारा निन्दा किये जाने पर क्रोधित न होगा और स्तुति या प्रशंसा करने पर हर्षित न होगा । ऐसी स्थिति आने पर ही उसके उपदेशों का प्रभाव लोगों पर पड़ सकेगा ।
पर ऐसी स्थिति कब आएगी ? तभी, जबकि व्यक्ति सच्चा ज्ञान सन्तोष, क्षमता तथा धैर्य का अधिकारी बन जाएगा । आज के तो युग में थोड़ा वैभव प्राप्त होते ही अथवा कोई उच्च पदवी प्राप्त करते ही व्यक्ति अपने आपको अधिकारी मान बैठता । वह यह भूल जाता है कि ऐसा अधिकार कब तक टिकेगा ? जब तक वह पद उसके पास रहेगा तभी तक तो अथवा जब तक उसकी तिजोरी में धन रहेगा तभी तक वह अपने आपको अधिकारी मान
पाएगा ।
दौलत क्या अधिकार का लक्षण है ? आप थोड़ा सा धन पाकर ही अहंकार से भर जाते हैं, अकड़कर चलते हैं, पर यह विचार नहीं करते कि यह दौलत कब तक रह सकती है ? दोलन का अर्थ हम दो लतों से भी लगा सकते हैं । लत यानो आदत । दौलत अथवा लक्ष्मी में दो लतें होती हैं एक आ की और एक जाने की। क्योंकि दौलत या लक्ष्मी चंचल होती है, आती और जाती रहती है यह सभी जानते हैं ।
तो लक्ष्मी की ये दोनों लतें खराब होती हैं । आप पूछेंगे यह किस प्रकार ? इस प्रकार कि जब यह आती है तो पीठ में लात मारती है ।
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