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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
भी आज की पीड़ी के तो अनेक युवक मांस, शराब और जुए को भी आना चुके हैं तथा इनका प्रयोग करके ही अपने आपको सभ्य मानते हैं। कारण इसका यही है कि वे सन्तों के सम्पर्क में नहीं आ पाते । प्राचीन काल से जो यह समाज अनेकानेक दुगुणों से बचा हुआ है वह सन्तों की संगति और उनके उपदेशों को हृदयंगम करने के कारण है।
___ इसलिये प्रत्येक माता-पिता को चाहिए कि वह अपनी सन्तान में प्रारम्भ से ही उत्तम संस्कार डालें। उनकी रुचि सद्गुरु की संगति और उनके उपदेशों में बढ़ायें । अन्यथा यह अर्य कुल, आर्यक्षेत्र और आर्य जाति का पाना निरर्थक चला जायेगा।
बहुत से व्यक्ति आकर हमसे कहते हैं . "महाराज !" हमारे समाज में दहेज की प्रथा दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ रही है । पैसे वाले व्यक्ति तो लाखों खर्च करके अपनी शोभा बढ़ाते हैं पर मध्यम वर्ग मारा जाता है। वास्तव में यह हजारों का टीका और दहेज लेना बहुत बुरी बात है । इस कुप्रथा के कारण अनेक गुणवान एवं सुशिक्षित कन्याओं को योग्य घर बार नहीं मिल प ता तथा पैसा दिया जाने पर चाहे जैसी कन्या लक्षाधीशों के यहाँ पहुँच जाती है।
टीका तथा दहेज आदि अधिक से अधिक देकर चार दिन के लिये तो आप यश प्राप्त कर लेते हैं किन्तु इसका कुप्रभाव समाज के अन्य व्यक्तियों पर कितना पड़ता है इसका भी आप कभी अन्दाज लगाते हैं क्या? नहीं, कितने निर्धनों की आहे आपको लगती हैं यह भी आप सोच नहीं पाते ।
कितना अच्छा हो कि आप लोग दहेज तथा अन्य इसी प्रकार के व्यर्थ जाने वाले पैसे को परोपकार में खर्च करे। पर यह उपदेश आपके हृदय में उतरे तभी तो यह सब सम्भव है । अन्यथा तो लोग बोलेंगे ही, चुप क्यों रहेंगे? आप आवश्यकता से अधिक सांसारिक सुखों का उपभोग करें और खाये न जा सके इतने खाद्य पदार्थों का संग्रह करें तथा दूसरी और असंख्य लोगों को भरपेट रोटी भी नसीब न हो तो वे चुप कैसे रह सकते हैं ? इसीलिये मेरा कहना है कि लोगों का मुंह बन्द रखना है तो बांटकर खाना चाहिये। समाज में कुरीतियों को प्रश्रय देकर उसे खोखला नहीं बनाना चाहिए।
आप सन्तों के सम्पर्क में आते हैं, उनके उपदेश सुनते हैं, किन्तु उस पर अमल नहीं करते । फिचूलखर्ची में प्रतियोगिता के लिये तो आप फौरन तैयार हो जाते हैं पर जहाँ आत्म-कल्याणक रो क्रियाएँ करने को कहा जाता है, इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देते हैं।
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