Book Title: Anand Pravachan Part 03
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 283
________________ २६६ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग जब फिस्स हुए हाथ, थके पाँव भी पहले | फिर जिसके जो कुछ शौक में आवे सोई कहले ॥ सब चीज का होता है बुरा, हाय ! बुढ़ापा । आशिक को तो अल्लाह न दिखलाय बुढ़ापा ॥ कहते थे जवानी में तो सब आपसे आ चाह । और हुस्न 'दिखाते थे, वह सब आके दिलरुबाह ॥ यह कट्टर बुढ़ापे ने किया, आह नजीर आह । अब कोई नहीं पूछता, अल्लाह ही अल्लाह ॥ सब चीज का होता है बुरा, हाय ! बुढ़ापा | आशिक को तो अल्लाह न दिखलाय बुढ़ापा || वास्तव में ही कवि का कथन यथार्थ है। बुढ़ापे में वाणी में वह जोश नहीं रहता जिसके द्वारा कोई उस व्यक्ति से भय खाये । हाथ, पैर व शरीर क्षीण हो जाने पर छोटे से छोटा बालक भी चाहे जैसी हँसी उससे कर जाता है तथा वे ही सब व्यक्ति जो उसके कमाये हुये धन पर पलते हैं तथा उसकी कृपा से हो मेव मिष्ठान आदि खा-खाकर अपने उदर को तृप्त करते हैं वे ही अपने पोषण करने वाले व्यक्ति का बुढ़ापा आने पर बात-बात में और तरह-तरह से अनादर करते हुए पेट भरने के लिये सूखे टुकड़े उसके सामने रख देते हैं । कहाँ तक कहा जाय, जवानी में तो व्यक्ति दिन-रात आकर खुशामद करते हैं तथा न ना प्रकार से उसे प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते हैं; वे ही वृद्धावस्था आ जाने पर गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं । कोई भी वृद्ध की खोजखबर लेने और बात पूछने नहीं आता । इसीलिये कवि कहता है - हे अल्लाह ! तू किसी को भी वृद्धावस्था प्रदान मत कर । बंधुओ, मेरे कथन का अभिप्राय यही है कि वृद्धावस्था तो आनी ही है उसे कोई रोक नहीं सकता । पर हमें केवल यही चाहिए कि हम युवा अथवा वृद्ध जो भी हो इसी क्षण जाग जायें । भले ही हम री उम्र कम अथवा ज्यादा हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि जब भावों की उत्कृष्टता आ जाती है तो जीव क्षणमात्र में ही अपने समस्त कार्यों को नष्ट करके संसार मुक्त हो जाता है । आवश्यकता है अपनी आत्मा में सम्यक्ज्ञान की ज्योति जगाने की । ज्ञान की महत्ता एक श्लोक से भली-भाँति जानी जा सकती है : Jain Education International अज्ञानी क्षपयेत् कर्म, यज्जन्मशत- कोटिभिः । तज्ज्ञानी तु त्रिगुप्तात्मा निहन्त्यन्तमुहूर्तके ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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