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सकेगी।
समय का मूल्य आँको २३५ महाभारत में कहा गया है :--
"जिसने इच्छा का त्याग किया है; उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा से बँधा हुआ है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है ? सच्चा त्यागी जहाँ रहे वही वन और वही भवन-कंदरा है।"
जो व्यक्ति इस बात को समझ लेते हैं, वे अपने जीवन का एक भी अमूल्य क्षण व्यर्थ नहीं जाने देते । नीतिकारों ने कहा भी है :--
'क्षणशः कणशश्चव, विद्यामर्थं च साधयेत ।" अर्थात् मनुष्य क्षण-क्षण का उपयोग करके ज्ञान हासिल करे तभी ज्ञानार्जन हो सकता है तथा व्यापारी एक-एक कण का, ज्ञानी एक-एक अनाज के दाने को संग्रह करे तो धन का सग्रह कर सकता है।
सारांश कहने का यही है कि धनव न बनना है तो एक-एक कण का संग्रह करो तथा ज्ञानवान बनना है तो बिना एक पल भी नष्ट किये ज्ञान हासिल करो तथा आत्म-साधना हो सकेगी। जीवन का एक एक क्षण अमूल्य है अत: प्रत्येक क्षण का जब सदुपयोग होगा तभी लक्ष्य की प्राप्ति संभव हो सकेगा। आत्मा का सच्चा घर
इस दुर्लभ जोवन का लाभ वही व्यक्ति उठा सकता है जो सम्पक ज्ञान की प्राप्ति करके संसार की अनित्यता और असारता को समझ लेता है तथा इस जगत को सराय और स्वयं को एक यात्री मानता है । महात्मा कबीर ने कहा भी है :
जिसको रहना उत्तघर, सो क्यों जोड़े मित्त ? जैसे पर घर पाहुना, रहे उठाये चित्त ॥ इत पर घर उत है धरा, बनिजन आये हाट ।
कर्म करीना बेवि के, उठि कर चाले बाट । इतने सीधे और सादर शब्दों में कवि ने मानव को चेतावनी दी है कि जिस व्यक्ति को अपनी आत्मा. पुण्य-प प तथा लोक और परलोक पर विश्वास है वह इस संसार से ममत्व रखे ही क्यों ? उसे इस संस र में इस प्रकार रहना चाहिये जिस प्रकार एक मेहमान किसी के घर ज ता है किन्तु यह समझकर कि यह मेरा असलो घर नहीं है, उसका वित्त अशांत रहता है तया प्रति पल उसे अपने घर का स्मरण आता है और वह अपने घर जाने के लिये मन में मंसूबे बाँधे रहता है तथा व्याकुल बना रहता है । ___ उहारणस्वरूप एक यात्री किसी बियावान जंगल में से होकर गुजरता है। मार्ग में दिन अस्त होने को हो जाता है और वह घबराने लगता है । किन्तु उसी समय उसे एक छोटा सा मकान या प्याऊ मिल जाती है तथा वहाँ रहो
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