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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
पर एक का अंक लिखा था तो तुमने उस पर एक बिन्दी और क्यों न लगवा ली ? क्या तुम्हें इतना भी नहीं सूझा ?"
बेचारा लकड़हारा स्त्री की बात सुनकर अपनी भूल पर दुखी हुआ पर बोला-"भागवान् ! अभी इस एक के अंक की परीक्षा तो हो जाने दे। अगर यह सचमुच ही मुझे एक रुपया रोज दिलाएगा तो बाद में देख लूगा । संत तो मेरे मार्ग में ही रहते हैं।"
इस घटना के बाद दो-चार दिन निकल गए और प्रतिदिन लकड़हारे को अपनी लकड़ी का एक रुपया रोज मिलने लगा। यह देखकर तो लकड़हारा लालच में आ गया और उसने एक दिन पुनः जाकर संत से कहा- “महाराज! आपकी कृपा से मुझे अब एक रुपया रोज मिल जाता है और किसी तरह मैं बाल-बच्चों सहित पेट भर लेता हूँ किन्तु हम में से किसी के तन पर पूरे वस्त्र नहीं हैं और शीत ऋतु आ रही है अतः आप मेरी हथेली पर एक अंक के आगे एक बिन्दी और लगा दें तो हमें पहनने को वस्त्र और ओढ़ने बिछाने के लिए बिस्तर मिल जाएँगे। आपकी बड़ी कृपा होगी अगर आप ऐसा करदें।" ___ महात्मा जी ने दया करके एक के आगे बिन्दी लगाकर वहाँ दस बना दिये और लकड़हारे को प्रतिदिन दस रुपये प्राप्त होने लग गये। किन्तु आप जानते ही हैं
"जहा लाहो तहा लोहो"
जहाँ लाभ होता हैं वहाँ लोभ बढ़ता ही जाता है।
इसी लोभ के वशीभूत होकर लकड़हारा कई बार महात्मा के पास पहुंचा तथा सुन्दर मकान तथा पत्नी के लिये जेवर आदि की आवश्यकताएँ बताकर एक के अंक पर कई बिन्दयां लगवाता चला गया।
परिणाम यह हुआ कि वह अपने शहर का एक धनाढ्य रईस बन गया और अत्यन्त विलासितापूर्वक सुख से जिन्दगी गुजारने लगा। किन्तु आप जानते ही हैं कि तृष्णा का कभी अन्त नहीं होता, उसका विराट उदर कभी भी तृप्ति का अनुभव नहीं करता। महात्मा सूरदास जी ने कहा भी है
तीनहिं लोक अहार कियो सब,
सात समुद्र पियो पुनि पानी। और तहाँ-तहाँ ताकत डोलत,
काढत आँख दुरावत प्रानी ॥
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