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७२ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग वाले अच्छे व्यक्ति को भी दुनिया बुरा ही मानने लगती है। कहा भी है :--
सत संगत के वास सों, अवगुन हू छिपि जात । अहिर धाम मदिरा पिवै, दूध जानिये तात ॥ असत संग के वास सों, गुन अवगुन है जात । दूध पिवै कलवार घर, मदिरा सहि बुझात ।।
-विदुर कितनी सुन्दर बात कही गई है ? कहा है-सज्जनों के समीप निवास करने से व्यक्ति में अगर अवगुण होते हैं तो भी वे छिप जाते हैं। जिस प्रकार कोई व्यक्ति अहीर के घर बैठकर मदिरा पीता है तो भी लोग यहीं मानते हैं कि वह दूध पी रहा है।
और इसके विपरीत दुर्जनों के साथ रहने वाले व्यक्ति के सद्गुणों को भी दुनियाँ दुर्गुण ही मानती है । यथा कलवार के यहाँ बैठकर व्यक्ति अगर वास्तव में दूध ही पीता हो तो भी लोग कहते हैं कि मदिरा पी रहा है।
एक पाश्चात्य विद्वान् ने भी कहा है :
"Tell me with whom thou art found and I will tell thee who thou art."
_गेटे अर्थात्- मुझे बताइये आपके संगी-साथी कौन हैं और मैं बता दूंगा कि आप कोन हैं। ___ कहने का अभिप्राय यही है कि दुनिया किसी भी व्यक्ति के साथियों को देखकर ही उस व्यक्ति के चरित्र का अन्दाज लगाती है । इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को सदा भले और सज्जन व्यक्तियों के सहवास में ही रहना चाहिए। इससे पहला लाभ तो यही होगा कि लोग उसे बुरा नहीं बताएंगे, उसकी निंदा नहीं करेंगे तथा दूसरा लाभ यह है कि अगर उसमें अवगुण होंगे भी तो सज्जन व्यक्ति के साथ रहने से वे धीरे-धीरे नष्ट हो जाएंगे और उनके स्थान पर सुन्दर एवं आत्म-कल्याणकारी सुगुणों की स्थापना होगी। इसका परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति के मन में अपूर्व शांति बनी रहेगी। सज्जन व्यक्ति का केवल उपदेश ही शिक्षा नहीं देता अपितु उसका प्रत्येक कार्य एवं प्रतिक्षण की दिनचर्या भी सतत् शिक्षा देती है तथा ज्ञान में वृद्धि करती है। एक श्लोक में भी यही बात कही गई है :
परिचरितव्याः सन्तो, यद्यपि कथयन्ति नो सदुपदेशम् ।
यास्तेषां स्वैरकथास्ता एव भवन्ति शास्त्राणि ॥ सज्जनों की उपासना करनी चाहिये; चाहे वे उपदेश न भी देते हों, क्योंकि जो उनके निजी वार्तालाप हैं वही सदुपदेश हो जाते हैं।
इस प्रकार सत्संगति से व्यक्ति को अनेक लाभ होते हैं। सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि सज्जनों की संगति करने से वह दुर्जनों के संग से बच जाता
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