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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
किसी उर्दू भाषा के शायर ने कहा है
झाड़ जनकी कब्र प है औ निशा कुछ भी नहीं, जिनके धोसों से अमीनों-आसमां थे काँपते । चुप पड़े हैं कब्र में अब हूं न हाँ कुछ भी नहीं। तख्तवालों का पता देते हैं तख्ते गौर के,
दम व खुद है कब्र में दागे अजा कुछ भी नहीं। कितनी दर्दनाक तस्वीर है ? कहा है--जिनके उद्घोष से पृथ्वी और आसमान भी कांप जाते थे वे ही महा प्रतापी व्यक्ति आज कब्र में सोये हुए हैं अब वे न अपने वैभव का प्रदर्शन कर सकते हैं और न ही उनकी बुलन्द आवाज ही कहीं गूज सकती है। उनका समस्त गौरव और समस्त बल उनके साथ ही कब्र में सो गया है। साथ गया है तो केवल उनका पुण्य और अशुद्ध
कर्म ।
वस्तुतः मनुष्य कैसा भी क्यों न हो, अगर वह धर्मपरायण और सत्यवादी है तो अपने साथ पुण्य ले जाता है और मिथ्याभाषी तथा पापात्मा होता है तो पाप कर्मों का बोझ लादकर संसार में भटकता है ।
हमारे प्रश्र व्याकरण सूत्र के द्वितीय संवरद्वार में सत्य के विषय में अत्यन्त विस्तृत वर्णन दिया गया है । सत्य क्या है ? सत्य से क्या-क्या लाभ हैं ? इनके कितने नाम करण किये गये हैं ? आदि-आदि सभी बातें सूत्र में समझाई गई हैं। एक स्थान पर यह भी कहा गया है - सच्च खु भगवं ।" अर्थात् - सत्य ही भगवान है।
सत्यवादिता साधारण वस्तु नहीं है । एक जबरदस्त कसौटी है, जिस पर बिरले ही खरे उतरते हैं। जो खरे उतर जाते हैं, उनका नाम सदा के लिये अमर हो जाता है । सत्यवादी हरिश्चन्द्र को हजारों युग बीत जाने पर भी संसार याद करता है। वह क्यों ? इसीलिये कि उन्होंने सत्य के लिये अपना सर्वस्व त्याग दिया तथा अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेचा ? क्या प्रत्येक व्यक्ति सत्य को ऐसी कसौटी पर खरा उतर सकता है ? नहीं ऐसी महान् आत्माएँ कोई-कोई ही होती हैं और जो होते हैं वे अधिक काल तेक संसार-भ्रमण नहीं करतीं।
इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को सत्य भाषण करते हुए अपना आचरण उत्तम बनाना चाहिए तथा झूठ को कभी भी प्रश्रय नहीं देना चाहिए ।
संस्कृत के एक विद्वान ने असत्य भाषण को अत्यन्त हानिकर बताते हुए कई उदाहरणों से इसकी पुष्टि की है । कहा है--
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