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सत्य का अपूर्व बल
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! ___ श्री उत्तरायन सूत्र के अट्ठाइसवें अध्याय की पच्चीसवीं गाथा के आधार पर कई दिन से हम विचार विनिमय कर रहे हैं । विनय के विषय में कल बताया जा चुका है । विनय के पश्चात् गाथा में सच्च' शब्द आया है। सच्च का अर्थ है- सत्य । सत्य के विषय में रुचि रखना तथा सत्य बोलना क्रिया रुचि के अन्दर ही आता है। सत्य का महात्म्य
महर्षि वेदव्यास ने सत्य को अत्यन्त महान् और सब से बढ़कर धर्म माना है । कहा है
"सत्य से बढ़कर धर्म नहीं है । सत्य परब्रह्म परमात्मा है।" और महात्मा गाँधी ने कहा है
"परमेश्वर सत्य है। यह कहने के बजाय सत्य स्वयं ही परमेश्वर है।" यह कहना अधिक उपयुक्त है।"
एक पाश्चात्य विद्वान के भी यही विचार हैं"One of the sublimest things in the world is plain truth."
-बुल्बर सरल सत्य संसार की सर्वोत्कृष्ट वस्तुओं में से एक है।
अभिप्राय यही है कि सत्य जीवन का सबसे सुन्दर शृंगार है और सर्वोत्तम धर्म है । जो व्यक्ति मन से, वचन से और शरीर से सत्य का आचरण करता है वह परमेश्वर को पहचान लेता है तथा मुक्ति का अधिकारी बनता है। देखा जाय तो सत्यवादी और असत्यवादी दोनों की अन्त में गति एक सी ही होती है । एक दरिद्र की कब्र भी उसी प्रकार जमीन में बनाई जाती है जिस प्रकार एक अमीर की।
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