________________
इन्द्रियों को सही दिशा बताओ १५१ अर्थात्-सेकड़ों मानसिक और शारीरिक रोग स्वास्थ्य का नाश कर डालते हैं। जहाँ सम्पत्ति और वैभव है वहाँ विपत्ति चोर के समान दरवाजा तोड़कर आक्रमण करती है । जो जन्म लेता है, उसे मृत्यु शीघ्र ही अपने चंगुल में फंसा लेती है । तब बताओ निरकुश विधि ने कौन-सी वस्तु सदा स्थायी रहने वाली बनाई है ?
कवि का कथन यथार्थ है कि संसार में कोई भी वस्तु स्थायी रहने वाली नहीं है । या तो उनका स्वयं ही वियोग हो जाता है या फिर मनुष्य मरकर उन्हें छोड़ जाता है. इसलिये आवश्यक है कि मृत्यु को सदा स्मरण रखा जाय ।
कहा जाता है कि बादशाह ने अपने महल में स्थान-स्थान पर, यहाँ तक कि दरबार में भी अनेक कलें बनवा रखी थीं। यह उसने इसलिये किया था कि कब्रों को देखकर उसे हरदम मृत्यु याद आती रहे और मृत्यु के याद आ जाने से वह पापों से बचता हुआ खुदा को याद करता रहे ।
जो व्यक्ति संसार में आसक्त नहीं रखता वह अपना सम्पूर्ण समय भी सांसारिक कार्यों में बरबाद कर सकता है। अपने एक-7क क्षण की कीमत मानकर साधना के लिये तथा ज्ञ न र्जन के लिए समय निकाल ही लेता है । ऐसा व्यक्ति ही सच्चा सन्त या महात्मा कहला सकता है। " कवि जोक ने कहा है :
सरापा पाक हैं. धोये जिन्होंने हाथ दुनिया से।
नहीं हाजत कि वह पानी बहायें सर से पाऊँ तक । कितनी सुन्दर बात है ? वास्तव में सांसारिक विषय भोगों से जिन्होंने मुक्ति पा ली है उनकी आत्मा पूर्णतया पाक अर्थात् निर्मल हो चुकी है। ऐसे व्यक्तियों को गंगास्नान या मल-मलकर शरीर को साफ करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जिनके हृदय से वासनाएँ निकल जाती हैं उन्हें फिर किसी भी दिखावे की आवश्यकता नहीं रहती। __इसीलिए बन्धु पो ! हमें इन्द्रियों के विषयों से बचना चाहिए ताकि हमारी बुद्धि निर्मल बने और निर्मल बुद्धि के द्वारा हम सम्यज्ञान हासिल कर मोक्षमार्ग पर बढ़ सकें । मुक्ति का सही पय ज्ञान ही दिखा सकता है और ज्ञानलाभ वही साधक कर सकता है जो अपने मन और इन्द्रियों पर सयम रखने में समर्थ हो।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org