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आत्म-शुद्धि का मार्ग; चारित्र १५७
पुण्य जाएगा जो दान देकरे उपार्जित किया जाएगा। एक उदाहरण से आप यह बात समझ सकेगे तत्वज्ञ सेठ
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एक सेठ अत्यन्त वैभवशाली थे । करोड़ों की सम्पत्ति उनके पास थी किन्तु वे दिल के बड़े उदार और परोपकारी वृत्ति के थे । कोई भी याचक उनके द्वार से खाली नहीं जाता था साथ ही उनकी धर्म के प्रति अत्यन्त श्रद्धा और अटूट लगन थी । उनकी इन विशेषताओं के कारण चारों ओर खूब प्रशंसा होने लगी ।
एक बार एक महात्मा उनके नगर में आए । महात्मा जी के यहाँ वे सेठजी और अन्य अनेक व्यक्ति भी दर्शन र्थ गए । कुछ समय पश्चात् वहाँ भी सेठ जी के विषय में चर्चा होने लगी । लोग महात्मा जी से सेठ की भाग्यवानी की साहना करने लगे ।
किन्तु सेठजी बड़े तत्वज्ञ थे । वे अपनी प्रशंसा और अपने वैभव की सराहना सुनकर बोले-
"महाराज ! ये लोग कहते हैं कि मैं बड़ा मालदार हूँ पर यह बात सत्य नहीं है ।"
संत ने सहज भाव से पूछा - " ऐमा क्यों ? तुम्हारे पास करोड़ों की सम्पत्ति है और चार-चार सुपुत्र भी हैं । फिर तुम्हारी पुण्यवानी और धन सम्पन्नता में क्या कसर है ?"
सेठजी ने मुस्कराते हुये उत्तर दिया – “भगवन् ! बाह्य दृष्टि से जैसा लोग कहते हैं मैं करोड़पति अवश्य हूँ किन्तु आंतरिक दृष्टि से देखा जाय तो मैं केवल बीस हजार का ही मालिक हूँ । क्योंकि मेरी जितनी भी दिखाई देने वाली पूंजी है, वह सब मैं यहीं छोड़कर जाने वाला हूँ केवल शुभ खाते में arr किया हुआ बीस हजार रुपये का फल ही मेरे साथ जाएगा ।"
"दूसरे, व्यवहार दृष्टि से मेरे चार पुत्र जरूर हैं पर वे भी मुझे सिर्फ श्मशान तक ले जाएँगे । अतः वे चारों पुत्र नकली हैं ।"
सेठजी की यह बात सुनकर सब विचार करने लगे. यह क्या बात हुई ? क्या पुत्र भी नकली होते हैं ? फिर असली पुत्र कौन से कहलाते हैं ? एक व्यक्ति ने पूछ भी ली यह बात ।
सेठजी बोले -- " भई मेरा साथ देने वाले मेरे असली लड़के दो हैं । एक तो धर्म जिसका कुछ ही अंशों में मैंने उपार्जन किया है, और दूसरा है पाप । धर्म सुपुत्र है वह मेरी रक्षा करेगा और पाप कुपुत्र है जो कष्ट देगा किन्तु रहेगा तो मेरे साथ ही । इस प्रकार मेरे पुत्र केवल ये ही दोनों हैं ।"
सेठजी की बात यथार्थ थी । लोगों की समझ में आ गया कि सच्चा धन
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