________________
१६८
आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
पारणा करना चाहिये । अतः महाराजा अम्बरीष ने ब्राह्मणों की आज्ञा से इस दोष को मिटाने के लिये तुलपी का एक पत्ता मुंह में ले लिया।
इतने में ही दुर्वासा ऋषि आ गये और बिना आज्ञा लिये महाराज को तुलपी का पत्ता ले लेने के कारण क्रोध से आगबबूला हो गये । मारे क्रोध के उन्होंने अम्बरीष को शाप दे दिया-"तुझे जो इस बात का गर्व है कि मैं इसी जन्म में संसार-मुक्त हो जाऊँगा वह गलत साबित होगा और अभी तुझे संसार में दस बार जन्म मरण करना पड़ेगा।"
कहते हैं कि ऐसा शाप दे देने पर भी ऋषि को तृप्ति नहीं हुई और उन्होंने कृत्या नामक एक राक्षसी का निर्माण किया जो पैदा होते ही अम्बरीष को खाने के लिये दौड़ी।
अपने तपस्वी भक्त की यह दुर्दशा भगवान् से नहीं देखी गई और उन्होंने उसी क्षण अपने सुदर्शन-चक्र को भक्त रक्षा के लिये भेज दिया।
सुदर्शन चक्र आया और वह कृत्या राक्षसी को मारकर दुर्वासा ऋषि के पीछे पड़ गया। दुर्वासा ऋषि चक्र के डर से तीनों लोकों में भागते फिरे पर किसी ने उन्हें आश्रय नहीं दिया । अन्त में वे भगवान् विष्णु के पास गये और विष्णु ने उन्हें महाराजा अम्बरीष से ही क्षमा याचना करने के लिये कहा।
___ मरता क्या न करता ? इस कहावत को चरितार्थ करते हुए दुर्वासा ऋषि लौटे और अम्बरीष के चरणों पर आ गिरे । दयालु राजा ने बड़ी विनम्रता से स्तुति करके चक्र को शान्त किया। ___इसके पश्चात् विष्णु भगवान ने प्रकट होकर दुर्वासा ऋषि से कहा- आप घोर तपस्वी हैं अतः आपका दिया हया शाप निष्फल तो नहीं जा सकता किन्तु अपने भक्त के शाप को मैं ग्रहण करता हूँ अर्यात् इसके बदले में मैं दस बार शरीर धारण करूंगा।
बन्धुओ ! इस कथा से आपको दो बातों का ज्ञान हुआ होगा। प्रथम तो यह कि अपने एकादशी व्रत अथवा तपस्या के प्रभाव से अम्बरीष ने भगवान को भी अपनी सहायता के लिये बाध्य कर दिया अर्थात् तपस्या में कितनी चमत्कारिक शक्ति होती है यह सिद्ध किया । दूसरे, यह स्पष्ट हो गया कि तपस्या कभी निष्फल नहीं जाती।।
दुर्वासा ऋषि क्रोधी अवश्य थे किन्तु घोर तपस्वी भी थे अतः उनका दिया हुआ शाप खाली नहीं गया और उसे स्वयं विष्णु को लेना पड़ा। इससे ज्ञात होता है कि तप कभी निरर्थक नहीं जाता। आज व्यक्ति थोड़ी-सी भी तपस्या करके उसके फल में सन्देह करने लगते हैं कि कौन जाने इसका लाभ मुझे कुछ मिलेगा या नहीं। वे भूल जाते हैं कि बीज बोने पर फसल पैदा होती तो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org