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विनय का सुफल
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अपने ऊपर उपकार करने वाला मित्र यदि दैवयोग से अपने घर आ जाय तो नीचात्मा भी भक्तिपूर्वक उसका आदर करते हैं, उससे विमुख नहीं होते फिर उच्चात्माओं का तो कहना ही क्या है । अर्थात् वे तो उपकार करने वाले का उपकार करते ही हैं।
युग प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी बड़े भाव भरे शब्दों में कहा है
He who wants to do good knocks at the gate; he who loves finds the gate open. ___जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है, वह द्वार खटखटाता है। जिसके हृदय में प्रेम है उसके लिये द्वार खुले हैं।
कहने का सारांश यही है कि उपकारी का उपकार करना एक प्रकार से अपना ही उपकार करना है और मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह अपने उपकारी के उपकार को कभी न भूले और उसके किये हुए उपकार से बढ़कर उसका उपकार करे । उपकार के विषय में अधिक क्या कहा जाय उसका महत्त्व तो पशु-पक्षी भी समझते हैं।
जीवनदाता को जीवनदान
कहते हैं कि एक बार एक चींटी नदी के जल में बही जा रही थी। नदी के किनारे पर खड़े हुए वृक्ष पर उस समय एक चिड़िया बैठी थी उसने चींटी को जल में बहते हुए देखा तो उसे बड़ी दया आई किन्तु वह निकाले कैसे ? सोच विचार कर चिड़िया ने चींटी के पास एक वृक्ष का पत्ता गिरा दिया । चींटी पत्ते पर आकर बैठ गई तो चिड़िया ने उस पत्ते को अपनी चोंच से उठाकर नदी से बाहर सूखी जमीन पर रख दिया। परिणाम यह हुआ कि चींटी की जान बच गई। दोनों में इस घटना के पश्चात् बड़ी मित्रता हो गई।
चींटी चिड़िया के प्रति बड़ी कृतज्ञ हई और अपने पर उपकार करने वाली चिड़िया का बदला चुकाने का अवसर देखने लगी। आखिर एक दिन उसे मौका मिल ही गया।
एक शिकारी उस जंगल में आया और शिकार करता हुआ घूमने लगा। इसी बीच उसने चींटी की सखी चिड़िया पर भी निशाना साधा। चींटी ने ज्योहि यह देखा वह दौड़कर शिकारी के हाथ पर चढ़ गई और ज्योंहि शिकारी ने गोली चलाई, उसने शिकारी के हाथ पर जोर से काट खाया। चींटी के काटते ही शिकारी का हाथ हिल गया और उसका निशाना चूक गया । परि
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