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ज्ञान प्राप्ति का साधन : विनय
आगे कहा है - किसी की वाणी कितनी भी नम्रता और मधुरता क्यों न लिये हो, अगर वह सत्य से मंडित नहीं है तो सौन्दर्य रहित ही मानी जाये। इसी प्रकार मनुष्य के पास धन की मात्रा कितनी भी क्यों न बढ़ जाये अगर उसमें उदारता नहीं है, दान की सुन्दर भावना नहीं है तो उसका समस्त धन व्यर्थ है, सौन्दर्यहीन है। क्योंकि सम्पत्ति केवल दान से ही शोभा पाती है ।
अगली बात मन के विषय में कही गई है कि व्यक्ति के मन की महत्ता और शोभा अन्य व्यक्तियों से मंत्री स्थापित करने में है। अगर किसी व्यक्ति के मन दान, दया, परोपकार और सेवा आदि के गुण हैं किन्तु संसार के समस्त प्राणियों के प्रति मंत्री भाव नहीं है तो वे अन्य सद्गुण भी सुन्दर और सरस नहीं मालूम होते । इसी प्रकार चांदनी रात के भूषण कमल हैं और सज्जनों की वाणी के भूषण सूक्तियाँ हैं । इनके आभाव में सौन्दर्य अधूरा रह जाता है । पर कवि ने आगे क्या कहा है ? यही कि समस्त गुणों का भूषण एकमात्र विनय है । और इसके न होने पर कोई भी गुण शोभा नहीं पाता ।
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संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि विनय गुण सब गुणों से उत्तम है, महान् है । जो व्यक्ति अपने से बड़ों के तथा गुणवानों के प्रति विनय भाव रखते हैं, उनका सम्म न और सत्कार करते हैं, अपनी शिक्षा, वैभव, तप एवं बल का अभिमान न करते हुये अपनी त्रुटियों एवं अयोग्यताओं को समझते हुये गुरुजनों से सदुपदेशों के द्वारा उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते हैं वे भव्य प्राणी ही ज्ञान के अधिकारी बनते हैं तथा अपने जीवन को निर्मलता की ओर ले जा सकते हैं ।
हमारा धर्म विनयमूलक है और वह गुणों की श्रेष्ठता को महत्त्व देता है वेश परिधान अथवा आडम्बर को नहीं । अर्थात् जो ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र में अधिक हैं उनको विनय करने का उपदेश देता है । यही कारण है कि अगर एक साठ वर्ष का वयोवृद्ध व्यक्ति भी दीक्षा लेता है तो उसे पूर्वदीक्षित दस वर्ष साधु की भी वंदना करनी पड़ती है । एक फटेहाल निम्न कुल के दीक्षित संत के चरणों में बादशाह को भी झुकना पड़ता है ।
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किन्तु आज के युग में शिक्षा प्रणाली कुछ इस प्रकार की है कि छात्रों में किताबी ज्ञान भले ही बढ़ता चला जाय किन्तु विनय गुण नहीं पनपता । परिणामस्वरूप शिक्षक और शिष्य के बीच जैसा मधुर सम्बन्ध स्थापित होना चाहिये उसके दर्शन भी नहीं होते । उलटे स्कूलों से पढ़कर निकले हुए छात्र कालेजों तक जाते-जाते तो इतने उद्दण्ड हो जाते हैं कि उनके मन के माफिक न चलने पर वे अपने प्रोफेसरों को भी सजा देने की धमकियाँ देते हैं ।
यही हाल अधुनिक परिवारों का भी है । परिवार के छोटे-छोटे सदस्य, पुत्र, पौत्र आदि भी अपने से बड़ों को अपशब्द कहते हुये तथा गालियाँ देते हुये
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