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असार संसार
"हाथ जल गया माँ ! खिचड़ी बहुत गरम है ।" जलन से व्याकुल होता हुआ लड़का बोला ।
पुत्र के दुःख से दुःखी होकर मां भर्त्सना के स्वर में बोली - "अरे अभागे ! क्या तू भी चन्द्रगुप्त और चाणक्य जैसा ही बेवकूफ है ?"
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चन्द्रगुप्त और चाणक्य दूर कहाँ थे, वहीं तो खाट पर बैठे थे । वृद्धा की बात सुनकर उनके कान खड़े हो गए और तुरन्त ही उन्होंने पूछ लिया-" माताजी ! चन्द्रगुप्त और चाणक्य मूर्ख कैसे हैं ? क्या मूर्खता की है उन्होंने; और फिर उनका उदाहरण आपने अपने पुत्र पर कैसे घटित किया ?
बुढ़िया मुस्कराती हुई बोली--"देखो बेटा ! चन्द्रगुप्त राजा है और चाणक्य उनका बुद्धिमान मन्त्री । वे लोग नंद वंश का नाश करना चाहते हैं पर उनको इतनी अक्ल नहीं है कि पहले आस -पास के छोटे मोटे राजाओं को जीतकर तब राजधानी पर हमला करते इससे जीते हुए राजाओं का भी उन्हें सहयोग मिल जाता । पर उन मूर्खों ने सीधे ही बीच में जाकर राजधानी पाटलीपुत्र पर चढ़ाई कर दी और इसीलिये अकेले और सहायक हीन होने के कारण हार गए ।"
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"इसी प्रकार मेरे इस लड़के ने भी किया कि गरम खिचड़ी में बीच में ही सीधा हाथ डाल दिया । इसे चाहिये था कि पहले आस-पास अर्थात् किनारेकिनारे की लेकर ठंडी करता हुआ खाता । क्यों ठीक कहा है न मैंने ?"
वास्तव में ही चन्द्रगुप्त और चाणक्य की आँखें वृद्धा की बात से खुल गई । उन्होंने वृद्धा की बात को शिक्षा मानकर तथा अपनी बुद्धि का भी उपयोग करके नंद- वंश का नाश किया। तभी कहा जाता है-
बुद्धेर्बुद्धिमताँ लोके नास्त्यगम्यं हि किंचन । बुद्ध्या यतो हता नन्दाश्चाणक्येन । सिपाणयः ॥
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बुद्धिमानों की बुद्धि के सम्मुख संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है । बुद्धि से ही शस्त्रहीन चाणक्य ने सशस्त्र नंद वंश का नाश कर दिया ।
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इस उदाहरण से यही अभिप्राय है कि प्रथम तो मनुष्य अपनी बुद्धि से काम करे और अगर किसी कारण से उसमें सफल न हो पाए तो अन्य बुद्धिमान व्यक्तियों की सहायता से कार्य सम्पन्न करे । जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता । उर्दू भाषा के कवि ने लिये भर्त्सना की है कि तूने अपनी अक्ल को तो गँवा ही दिया भी शिक्षा ग्रहण नहीं की । परिणाम यह हुआ अपनी सब विशेषताओं को खो
मानव की इसी -
और दूसरे से
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बैठा ।"
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