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स्वाध्याय : परम तप
ज्ञान का होना भी अनिवार्य है और हम इसी उद्देश्य को लेकर ज्ञान प्राप्ति के कारणों का विवेचन कर रहे हैं । ज्ञानप्राप्ति के ग्यारह कारण हैं जिनमें से आठ कारणों को हम भली-भाँति समझा चुके हैं और आज नवें कारण के विषय में कहना है। ज्ञान प्राप्ति का नवाँ कारण है— सीखे हुए ज्ञ न पर पुनः पुन: विचार करना । जो ज्ञान हासिल किया जाय उसका बार-बार चिंतन करने पर ही वह वृद्धि को प्राप्त होता है ।
बहीखाता पलटते रहो
आप लोगों को आपके बुजुर्ग शिक्षा देते हैं- "सदा बहीखाते के पन्न े उलटते रहो ।" वे कहते हैं - " बहियाँरा पन्ना उलटे तो सवा तोलो सोना लादे ।"
यहाँ सोने से मतलब सोना ही नहीं है । क्योंकि बहीखाते में सोने की डलियाँ रखी हुई नहीं होतीं । उनका भाव यह होता है कि- बही के पन्न उलटते रहने से ध्यान रहता है कि अमुक से हमें रकम लेनी है या अमुक में रकम डूब रही है । कभी-कभी तो समय पर रकम न माँगी जाय तो मियाद समाप्त हो जाने से फिर मिलनी संभव नहीं होती । इसीलिये बहीखाते उलटने का आदेश आपको दिया जाता है कि आपको देने त्र लेने का बराबर ध्यान रहे ।
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शास्त्रों के अनुसार भी जो कर्ज लिया जाता है वह अवश्यमेव चुकाना पड़ता है । ऋण, वैर और हत्या इन तीनों का फल भुगते बिना छुटकारा कदापि संभव नहीं है । अतः इनसे बचने के लिए भी अपने प्रतिदिन के कार्यकलाप और आचरण पर रात्रि को अवश्यमेव चिंतन करना चाहिये । उसे भी एक तरह से अपने व्यवहार का बहीखाता ही मानना चाहिये | अगर आप अपने प्रतिदिन के कार्यों का लेखा-जोखा रखेंगे तो आपको अपनी भूलों का तथा किये गए अनुचित कार्यों का पता चल जाएगा और उनके लिए पश्चात्ताप करते हुए आप भविष्य में उनसे बचने का प्रयत्न करेंगे ।
तो हमारा आज का विषय तो यह है कि सीखे हुए ज्ञन की पुनरावृत्ति करते रहें तो ज्ञान की वृद्धि होती है । शास्त्रों में बताया गया है कि गौतमस्वामी ने भगवान महावीर से अनेकों प्रश्न पूछ-पूछकर अपने ज्ञान की वृद्धि की । प्रश्न भी थोड़े नहीं, पढ़ने में आया है कि छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर भगवान और गौतम स्वामी के बीच हुए । जम्बू स्वामी भी सुधर्मा स्वामी के सन्मुख एक शास्त्र पूरा करते ही दूसरा पढ़ने की आज्ञा अविलम्ब माँगते थे । यह सब ज्ञान प्राप्ति और ज्ञान वृद्धि की जिज्ञासा के कारण ही संभव होता है । जिस व्यक्ति में ज्ञान प्राप्त करने की प्रबल उत्कंठा होती है. वह अपना
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