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६८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग का फल देता है। किन्तु कर्मवश कोई वृक्ष ऐसा भी रह जाता है जो कि किसी प्रकार का फल नहीं देता।
इसी प्रकार स्त्री जाति संतान प्रसव करती है, किन्तु पूर्व कर्मों के फलस्वरूप कोई-कोई वन्ध्या भी रह जाती है अर्थात् वह किसी भी सन्तान को जन्म नहीं दे पाती।
तो पद्य में बताया है कि भाग्य-योग से कोई वृक्ष निष्फल रह सकता है और स्त्री भी वन्ध्या हो सकती है किन्तु दया और दान आदि की शुभ क्रियाएँ कभी भी निष्फल नहीं जातीं। उनका फल तो निश्चय ही मिलता है पर उनमें कपट होने से जैसा मिलना चाहिये वैसा नहीं मिल पाता।
ठाणांग सूत्र में बताया गया है कि मुनि को बयालीस दोषों को ध्यान में रखकर और उनसे बचकर आहार-प नी आदि लेना चाहिये। इससे उनकी बुद्धि निर्मल रहेगी। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे अर्थात् बयालीस दोषों में से किन्हीं दोषों को अनदेखा करके यानी कपट रखकर आहार-जल ले लेगे तो उनकी बुद्धि में मलिनता आ जायेगी। बुद्धि की मलिनता से तात्पर्य यही है कि बुद्धि के फल, ज्ञान में कमी आना अथवा उसमें विकृत हो जाना; तो यह कपट का ही परिणाम है। कपट करने पर उसका फल मिलना अवश्यंभावी है ।
पूज्यवाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने एक सियार और ऊँट का मनोरंजक उदाहरण देकर कपट के कुपरिणाम को समझाया है। उदाहरण पद्ममय है और इस प्रकार कहा गया है
श्याल कहे ऊँट मामा, चालो न चणा के खेत,
कपट न जाण्यो ऊँट संग ही सिधावे है। श्याल कहे आधा खेत बीच में पधारो क्यों नी,
श्याल ऊँट दोनों आछे चूट-बूट खावे हैं। जंबुक भरायो पेट खेत धणी आयो जाणी,
बोल्यो मामा मोय तो भूकण वाय आवे है। ऊँट की न मानी श्याल भूक के गयो है भाग,
लाठी पथरा की मार ऊँट मामा खावे है। एक सियार ने अपनी स्वार्थ-सिद्धि करने के लिये ऊँट से दोस्ती की और उसे अपना मामा बना लिया। ऊँट बेचारा, सीधा-साधा था अतः उसने सियार से भानजे का रिश्ता मान लिया।
एक दिन सियार ऊँट के पास आकर बोला-"मामा ! आजकल चने की फसल आई हुई है, खूब हरे-भरे खेत हैं और उनमें चने पक गये हैं। चलो न, आज किसी चने के खेत में चलें। आनन्द से पेट भरकर लौट आएंगे।" ___ऊँट भोला था । उसके दिमाग में उसके शरीर के अनुरूप बुद्धि नहीं थी अतः सियार के साथ हो लिया। दोनों खेत में आए और चने खाने लगे। ऊँट
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