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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
लेगा या उसको बुझा देगा वह सुखी रहेगा। किन्तु जो मनुष्य इस क्रोधाग्नि को अपने वश में नहीं कर सकता, वह अपने आप को भष्म कर लेगा। क्रोध से सबसे बड़ी हानि यह होती है कि इसके कारण वैर का जन्म होता है और उस स्थिति में मनुष्य सद्गुणों का संचय एवं ज्ञान-प्राप्ति का प्रयत्न करना तो दूर केवल अपने दुश्मन से बदला लेने की उधेड़बुन में ही पड़ा रहता है। और कभीकभी तो वह वैर जीवन के अन्त तक भी समाप्त नहीं होता तथा अगले जन्मों में भी नाच नचाता रहता है । हम आगमों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि किसी प्रकार वर जन्म-जन्म तक चलता है तथा महान् कर्म-बन्धन का कारण बनता है। ___पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने क्रोध से होने वाली हानि का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्र खींचा है -
कर क्रोध जीव जलते हैं, और जलाते, हो अहंकार में चूर कर बन जाते ।
नन्दन कानन में इसने आग लगाई,
कर आस्रव को निर्मूल मुक्ति अनुयायी। कितनी सुन्दर चेतावनी है ? कहा है- 'अरे मुक्ति के अभिलाषी भोले प्राणी ! तू क्रोध से दूर रह, क्योंकि जो जीव अहंकार में चूर होकर क्रूर बन जाते हैं तथा क्रोध के वश हो जाते हैं वे स्वयं भी क्रोधाग्नि में जलते हैं तथा औरों को भी जलाते हैं । यह क्रोध ही आत्मा में रहे हुए सद्गुण रूपी सुन्दर बगीचे में आग लगाता है अतः इससे दूर रहकर कर्मों के आस्रव को रोक !" ___ कवि ने आगे क्रोध को कम करने का उपाय भी बताया है। वह इस प्रकार है
होकर समर्थ जो क्षमा-भाव दिखलाते ।
अपराधी पर भी क्रोध न मन में लाते ॥ समता के सागर में जो नित्य नहाते । भव-सागर को वे शीघ्र पार कर जाते ॥
उपशान्त भाव शाश्वत अनन्त सुखदायी।
कर आस्रव को निर्मूल मुक्ति अनुदायो॥ वह. है - जो भव्य प्राणी अपनी हानि करने वाले अपराधी पर भी क्रोध न करके उसे क्षमा करने में समर्थ हो जाते हैं तथा सम-भाव के सुख्द सागर में अवगाहन करते हैं वे भव-समुद्र को शीघ्रातिशीघ्र पार कर लेते हैं । उपशमन भाव आत्मा को अनन्त एवं शाश्वत सुख की प्राप्ति कराते हैं । अतएव हे मुमुक्षु प्राणी ! तू आस्रव को रोक तथा कषायों पर विजय प्राप्त कर । कषाय आत्मिक गुणों को नष्ट करते हैं अतएव आत्म-हितषी प्राणी को इनका सर्वथा
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