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ज्ञान प्राप्ति का साधन : विनय
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त्याग करके अपनी आत्मा को निर्मल बनाना चाहिए ताकि उसमें शांति, सहिष्णुता, संतोष, सद्भावना आदि गुण पनप सकें तथा वह निरन्तर उन्नति-पथ पर बढ़ सके। प्रमाव का कुपरिणाम ____ अब आती है गाथा में कही गई तीसरी बात । वह यह है कि प्रमादी व्यक्ति को भी हित-शिक्षा नहीं भाती । जब जीवन में प्रमाद छा जाता है तो प्राणी यह नहीं समझ पाता कि उसके लिये हेय कौन-सी वस्तु है और उगदेय कौन-सी । अज्ञान का आवरण उसकी बुद्धि को कुठित कर देता है तथा ज्ञान गुण को पनपने नहीं देता । अज्ञान का अंधकार उसके मन पर छाया रहता है और उसके कारण वह सही मार्ग कभी नहीं खोज पाता।
प्रमादी पुरुष के हृदय में एक ऐसी जड़ता घर कर जाती है कि उसकी रुचि किसी भी शुभ-क्रिया के करने में नहीं रहती । वह मूढ़ व्यक्ति ज्ञान के अभाव में यह भी नहीं समझ पाता कि कौन-सी क्रिया उसे शुभ फल प्रदान करेगी, और कौन-पी अशुभ फल का कारण बनेगी ? उसका अधिक से अधिक समय किंकर्तव्यविमूढ़ता में नष्ट होता है क्योंकि प्रमाद एक तन्द्रा है और उसमें पड़ा हुआ मनुष्य न जागता हुआ-सा लगता है और न सोता हुआ सा ही। उसके हृदय में कभी ज्ञान का दीप नहीं जल पाता और न ही उत्साह की एक भी किरण प्रस्फुटित होती है । इस भावना के शिकार व्यक्ति न भौतिक क्षेत्र में विकास कर पाते हैं और न आध्यात्मिक क्षेत्र में ही बढ़ते हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन मोह-निद्रा में व्यतीत हो जाता है । कभी वह नहीं विचार पाता कि यह मानव-पर्याय उसे बड़ी कठिनाई से मिली है और अब अगर व्यर्थ चली गई तो पुनः प्राप्त होना दुर्लभ हो जाएगा!
ऐसे व्यक्तियों को महापुरुष बार-बार सावधान करने का प्रयत्न करते हैं . तया. पुन:-पुनः चेतावनी देते हुए कहते हैं -
महामोह नींद में अनादिकाल चिदानन्द । । सूतो है निःशंक निज सुधि सबही विसार ॥ विषय-कषाय राग-द्वेष औ प्रमाद वश ।
करम कमाय भव संकट सहे अपार ॥ घट में अनंत रिद्ध राजे पे लुकाय रही।
परख न कोनी कभौं ज्ञान नेन से निहार ॥ कहे अमोरिख जाग त्याग मोह नींद अब ।
देख निज रूप को निवारि के मिथ्यांधकार ॥ कवि ने उद्बोधन दिया है - "अरे चेतन ! तू अपने आपको भूलकर अन दि. काल से महा मोह की इस नींद में निश्चित होकर सोया हुआ है तथा विषय
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