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सत्संगति दुर्लभ संसारां ७१
इसके विपरीत जो व्यक्ति अशिक्षित होते हैं, किन्तु संत समागम करते हैं, हृदय और विचारों से महान् बन जाते हैं । इसका कारण यह होता है कि सत्संगति से उनकी देव, गुरु एवं धर्म में आस्था उत्पन्न हो जाती है और वे पूर्ण श्रद्धा सहित जो भी क्रिया करते हैं उसका उत्तम फल प्राप्त कर लेते हैं । इसीलिए पूज्यपाद पंडित मुनि श्री अमीऋषि जी महाराज ने कहा है :
उत्तम संग उमंग धरी,
सजिये सुप्रसंग अनंग निवारे । ज्ञान वधे रु सधे जिन आन,
अज्ञान कुमति को मूल उखारे ॥ शील संतोष क्षमा चित्त धीरज,
पातक से नित राखत न्यारे । डारत दुख भवोभव के रिख, अमृत संगत उत्तम धारे ॥
कवि ने मनुष्य को उद्बोधन दिया है कि "सदा उत्साह और उमंग के साथ उत्तम पुरुषों की संगति करो और उनकी संगति से हृदय के भावों को निर्मल बताते हुये विषय विकारों का त्याग करो ।"
" सत्संगति से तुम्हारा ज्ञान बढ़ेगा तथा भगवान के वचनों का पालन हो सकेगा । इस सबसे बढ़कर तो यह होगा कि तुम्हारे हृदय में घर किये हुए अज्ञान का लोप होगा एवं कुबुद्धि जड़-मूल से नष्ट हो जाएगी ।"
"तुम्हारे हृदय में शील, संतोष, क्षमा, धंयं आदि अनेक सद्गुणों का उदय होगा जो कि तुम्हारी आत्मा को पापों से दूर रखेगा तथा भव-भव के दुःखों से छुटकारा दिल.येगा | इसलिये हे प्राणी ! तुम उत्तम पुरुषों की संगति करो ।"
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वस्तुतः संत-जनों की संगति से हृदय में रहे हुए अवगुणों का नाश होता है तथा सद्गुणों का आविर्भाव हो जाता है ।
अब सत्संगति का पाँचवाँ लाभ क्या है, हमें यह देखना है । यह लाभ है मन में असीम शांति की स्थापना होना । जो व्यक्ति सज्जनों की संगति करता है उसके मन में अपार शांति सदा बनी रहती है। क्योंकि सज्जनों की संगति करने वाले व्यक्ति की कोई निंदा नहीं करता और उसे किसी प्रकार की लज्जा या शर्म का अनुभव नहीं होता । संत जनों की संगति करने वाला व्यक्ति अगर बुरा हो तब भी लोग उसे भला कहते हैं तथा बुरे व्यक्ति की संगति करने
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