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अल्प भोजन और ज्ञानार्जन
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इस संसार में ज्ञानी और अज्ञानी, दोनों प्रकार के प्राणी पाये जाते हैं । ज्ञानी पुरुष वे होते हैं जो अपने विवेक और विशुद्ध विचारों के द्वारा अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं तथा ज्ञान के आलोक में आत्म-मुक्ति के मार्ग को खोज निकालते हैं।
किन्तु अज्ञानी व्यक्ति इसके विपरीत होते हैं। वे विषय-भागों को उपादेय मानते हैं और उन्हें भोग न पाने पर भी भोगने की उत्कट लालसा रखने के कारण निरन्तर कर्म-बन्धन करते रहते हैं तथा अन्त में अकाम मरण को प्राप्त होकर पुनः-पुनः जन्म-मरण करते रहते हैं। इसीलिये ज्ञानी और अज्ञानी में अन्तर बताते हुए कहा गया है :
जं अन्नाणी कम्म खवेइ बहुयाइं वास कोडीहि ।
तं नाणी तिहि गुत्तो खवेइ ऊसास मित्तेण ॥ अर्थात्- जिन कर्मों को क्षय करने में अज्ञानी करोड़ों वर्ष व्यतीत करता है, उन्हीं कर्मों को ज्ञानी एक श्वास मात्र के काल में ही नष्ट कर डालता है।
बन्धुओ ! ज्ञानी और अज्ञानी की क्रिया में कितना अन्तर है ? ज्ञान का महात्म्य कितना जबर्दस्त है ? इसीलिये तो हमारे धर्म ग्रन्थ तथा धर्मात्मा पुरुष सम्यक्ज्ञान की प्राप्ति पर बल देते हैं । कहते हैं- अपने मन और मस्तिष्क की समस्त शक्ति लगाकर भी ज्ञान हासिल करो । ज्ञान हासिल करने के लिये वे अनेक उपाय भी बताते हैं जो कि ग्यारह भागों में विभक्त किये गए हैं। उनमें प्रथम है-उद्यम करना तथा दूसरा है-निद्रा कम करना । इन दो के विषय में हम काफी कह चुके हैं और आज तीसरे पर प्रकाश डालना है । ज्ञान प्राप्ति का तीसरा उपाय है-ऊनोदरी करना। ऊनोदरी को हमारे यहाँ तप भी माना गया है। ऊनोदरी क्या है ?
उनोदरी का अर्थ है-कम खाना । आप सोचेंगे कि थोड़ा-सा कम खाना भी क्या तपस्या कहलायेगी ? दो कौर (कवल) भोजन में कम खा लिये तो कौन-सा तीर मार लिया जाएगा?
पर बन्धुओं ! हमें इस विषय को तनिक गहराई से सोचना और समझना है । यही सही है कि खुराक में दो-चार कौर कम खाने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। किन्तु अन्तर पड़ता है खाने के पीछे रही हुई लालसा के कम होने से। आप जानते ही होंगे कि कर्मों का बन्धन कार्य करने की अपेक्षा उसके पीछे रही हुई भावना से अधिक होता है।
एक बार मैंने आपको बताया था कि मुनि प्रसन्नचन्द्र जी को ध्यान में बैठे हुए ही अपने राजकुमार पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को मार डालने का
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