________________
५८
आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
कुल भूषण पूज्यपाद श्री तिलोक ऋषि जी महाराज के द्वारा बताया गया है :
जाण रो अजाण लीजे, तंत लीजे ताणी ।
आगलो अगन होवे तो आप होजे पाणी ॥ कितना सरल उपाय है ? कहा है- अगर हम किसी व्यक्ति के स्वभाव को जानते हैं कि वह शीघ्र आवेश में आ जाता है, क्रोध करता है तथा कटु वचनों का प्रयोग करने में भी नहीं हिचकिचाता तो उसके वचनों से तर्कवितर्क से अथवा अनावश्यक प्रलाप में से भी कोई उपयोगी शिक्षा, अर्थात् सार तत्त्व निकलता हो तो हमें मौन रहकर ग्रहण कर लेना चाहिये और उसकी अन्य सब बातों को जानते हुये भी अनजान-सा बनकर उपेक्षित कर देनी चाहिए। __ इसके अलावा अगर उत्तर देना आवश्यक हो तो कहने वाले की कटु बातों का भी मृदुतापूर्वक उत्तर देकर उसके क्रोध को शान्त करने का प्रयत्न करना चाहिये । दोहे में इसी बात को दूसरे शब्दों में कहा है कि अगर सामने वाला व्यक्ति क्रोध की अग्नि से जल रहा हो तो हमें मधुर वचन रूपी शीतल जल से उसकी क्रोधाग्नि को शांत करना चाहिये । अगर हम कहने वाले के कटु शब्दों का उसी प्रकार उत्तर नहीं देंगे तो आखिर उसका क्रोध कब तक ठहरेगा ? निश्चय ही उसका क्रोध अल्प समय में ही उसके लिये पश्चाताप का कारण बन जाएगा और वह आपको अपना हितैषी मानकर स्वयं आपका हितैषी और मित्र बन जायेगा।
पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने भी विवेकपूर्वक बोली जाने वाली वाणी का महत्त्व बताया है :बोली से आदर और जग में सुयश होय,
बोली से सकल जन मित्र हो रहत हैं। बोली से अनेक विध भोजन मधुर मिले,
बोलो से खावत मार गाली भी सहत है। बोली से है खांड और बोली से पंजार त्यार,
बोली से तो जाय मूढ़ कैद की सहत है। अमीरिख कहे भवि बोली है रतनसार,
सुगुणी विवेकी बोल तोल के कहत है। पद्य में बताया गया है कि किस प्रकार उसके उपयोग से परस्पर पूर्णतया विरोधी फल निकलते हैं । एक ओर जहाँ मधुर वचनों से व्यक्ति को संसार में
आदर और सुयश प्राप्त होता है, प्रत्येक व्यक्ति उसका मित्र बन जाता है तथा किसी के यहाँ पहुँचने पर उसे हार्दिक स्वागत-सत्कार और भोजन-पान प्राप्त होता है, दूसरी ओर उसी वाणी का कटुतापूर्वक प्रयोग करने से व्यक्ति को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org