________________
मौन की महिमा ६३ निग्रह कर लेने पर भी वह पुनः-पुनः अपनी चपलता के कारण नियन्त्रण से बाहर होने का प्रयत्न करता है । परिणाम यह होता है कि उसे वश में करने वाला व्यक्ति अगर कमजोर हो तो स्वयं ही उसके वश में हो जाता है। __ मणो साहसिओ भीमो दुठ्ठस्सो परिधावइ ।
-उत्तराध्ययन सूत्र हमारे जैनागमों में मन को एक दुष्ट घोड़े की उपमा दी गई है। उसके विषय में कहा गया है कि जिस प्रकार दुष्ट घोड़ा अपने सवार के नियन्त्रण से बाहर हो जाता है तथा लगाम खींची जाने पर भी और वेग से दौड़ता है, उसी प्रकार मन को ज्यों-ज्यों नियन्त्रण में रखने का प्रयत्न किया जाता है त्यों-त्यों वह तेजी से विषयों को ओर उन्मुख होता है। एक उर्दू के कवि ने कहा है :
अस्प हो आजाद सरपट कैद होता है सवार । अस्प हो मुतलिकइनां हैरान होता है सवार ॥ इन्द्रियों के घोड़े छूटे बाग डोरी तोड़ कर । वह मरा, वह गिर पड़ा असवार सिर मुह फोड़कर॥ जाने मन आजाद करना चाहते हो अस्प को।
कर रहे आजाद क्यों हो आस्ती के साँप को । अस्प का अर्थ है- अश्व । कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि वश में न आया हुआ मन अपने स्वामी को एक दुष्ट घोड़े के समान महान् संकट में डाल देता है अतः इस मन रूपी आस्तीन के साँप को प्रारम्भ से ही नियन्त्रण में रखो, इसे तनिक भी छूट मत दो।
जो व्यक्ति ऐसा करेगा वही अपने मन एवं इन्द्रियों पर नियन्त्रण रख सकेगा और दूसरे शब्दों में. आत्म-दमन कर सकेगा। किन्तु ऐसा होगा कब ? जबकि वह सच्चा ज्ञान हासिल करेगा तथा उसके द्वारा अपनी आध्यात्मिक साधना को मजबूत बनाएगा । नियन्त्रण अभ्यास के द्वारा ही यह दुस्तर कार्य सम्पन्न किया जा सकेगा। __ तो बंधुओ ! यह स्पष्ट है कि सच्ची साधना करने का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने उद्देश्य में सफलता हासिल नहीं कर सकता। इसलिये आत्म-हितैषी व्यक्ति को सर्वप्रथम ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिये, और ज्ञानार्जन के लिये मुख्य शर्त यही है कि ज्ञानार्थी अपनी सम्पूर्ण शक्ति इसी उद्देश्य की पूर्ति में लगाए तथा निरर्थक बातचीत और बकवास में उसे व्यय न करे । __ जो व्यक्ति कम से कम बात करेगा वही ज्ञान प्राप्ति में अपना अधिक से अधिक समय और शक्ति लगाकर उसकी भली-भांति आराधना कर सकेगा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org