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सत्संगति दुर्लभ संसारा!
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो!
हमारा विषय ज्ञान-प्राप्ति के कारणों को लेकर चल रहा है। ज्ञान-प्राप्ति के ग्यारह कारण हैं, जिनमें से कल चौथे कारण 'मोन' का विवेचन किया गया था। आज हम पांचवें कारण के विषय में विचार-विमर्श करेंगे।
ज्ञान-प्राप्ति में पाँचवाँ कारण है-पंडित पुरुषों की संगति । पंडित पुरुषों की संगति कहा जाये अथवा सत्संगति कहा जाय, एक ही बात है। हम देखते ही हैं कि छात्र ज्ञान प्राप्त करने के लिये अपने शिक्षक के पास जाता है और साधक अपने गुरु के समीप रहकर ज्ञानाभ्यास करता है । दोनों का ध्येय एक ही है और वह है ज्ञान प्राप्त करना । अगर शिक्षक और गुरु ज्ञानी हैं तो वे ज्ञानाभिलाषी को सच्चे अर्थों में ज्ञानवान बनाएँगे और इसलिये ज्ञान प्राप्ति में पंडित पुरुषों की संगति मुख्य कारण मानी गई है। इतना ही नहीं जीवन का सर्वाङ्गीण विकास भी सत्संगति से ही हो सकता है यह बात निविवाद सत्य है। सत्संग और जीवन-निर्माण
कोई भी व्यक्ति अपने जन्म के साथ ही विद्वत्ता, वीरता अथवा कोई अन्य उल्लेखनीय योग्यता लेकर नहीं माता । वह आगे जाकर जो कुछ भी बनता है केवल संगति से ही बनता है। विद्वत् कुल में जन्म लेने वाला शिशु अगर कुसंगति में पड़ जाय तो चोर, डाकू, जुआरी और शराबी बन जाता है तथा हीन कुल में जन्म लेने वाला बालक सुसंगति पाकर महा विद्वान् और साधु-पुरुष बनकर संसार में लोगों का श्रद्धा-पात्र बनता है । एक श्लोक में कहा गया है :
असज्जनः सज्जन सङ्गिसङ्गात्,
करोति दुःसाध्यमपीह लोके । पुष्पःश्रया . शम्भुजाधिरुढ़ा,
पिपीलिका चुम्बति चन्द्रबिम्बम् ॥ असज्जन भी सज्जनों की संगति से इस संसार में दुःसाध्य काम कर डालते हैं। फलों के सहारे चींटी शंकर की जटा पर बैठकर चन्द्रमा का चुम्बन लेने पहुँच जाती है।
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