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निद्रा त्यागो! ४३
ज्ञान की प्रेरणा से ही प्रयत्न आत्म-विकास के मार्ग में गति करता है और उसी के परिणामस्वरूप परमात्मरूप महान् फल की प्राप्ति हुआ करती है।
इसलिये बन्धुओं ! हमें निद्रा का त्याग करते हुए सदा सजग रहना है तथा ज्ञान रूपी अमूल्य रत्न की प्राप्ति करके अक्षय सुख का उपार्जन करना है । इस मानव जीवन का एक-एक क्षण दुर्लभ और अमूल्य है। निद्रा के बहाने अगर इन्हें खो दिया तो हमारी मुक्ति की कामना निराशा के अतल सागर में विलीन हो जायेगी और अनन्तकाल तक हमें पुनः संसार-भ्रमण करना पड़ेगा तथा जन्म, जरा और मृत्यु के असह्य कष्टों को भोगना होगा । अत: बुद्धिमानी इसी में है कि हम दोनों प्रकार की निद्राओं का यथाशक्य त्याग करके जीवन के अमूल्य क्षणों का सदुपयोग करें तथा अपने अभीष्ट की ओर बढें। *
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