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निद्रा त्यागो !
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बनने पर अपनी खुराक पूरी हो जाने पर भी दो फुलके अधिक उदरस्थ करता है और कहीं जीमनवार आदि में जाने पर तो पूछना ही क्या है ? ठूस-ठूस कर खाये बिना रहा ही नहीं जाता। किन्तु इसके फलस्वरूप आलस्य और निद्रा मन व मस्तिष्क को घेरे बिना नहीं रहते तथा ज्ञानार्जन में बाधा पड़ती है। इसीलिये श्लोक में विद्यार्थी के अल्पाहार करने का विधान है । अगर भूख से कुछ कम खाया जाय तो अधिक निद्रा नहीं आती तथा शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है जिसके कारण ज्ञानाभ्यास में मन लगता है।
पाँचवाँ लक्षण है -'नारी-त्याग' । जब तक विद्यार्थी ज्ञानाभ्यास करे, तब तक उसे पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये । विवाह से पहले बुद्धि में जितनी सरलता और पवित्रता रहती है वह विवाह हो जाने के पश्चात् नहीं रहती क्योंकि विवाह के पश्चात् मन अनेकानेक विचारों और चिन्ताओं से भर जाता है । मैं यह नहीं कहता कि विवाह हो जाने के पश्चात् ज्ञान प्राप्त किया ही नहीं जा सकता, केवल यही कहता हूँ कि उसे उतनी शीघ्रता से और एकाग्रता से नहीं सीखा जा सकता, जितना कि विवाहावस्था से पूर्व में सीखा जाता है । कबीर का कथन है :
__ चलो-चलौ सब कोई कहै, पहुंचे बिरला कोय ।
यक कनक अरु कामिनी, दुरगम घाटी दोय ॥ इसका आशय यही है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तम लक्ष्य की ओर चलता हुआ आगे बढ़ो, आगे बढ़ो, कहता है लेकिन वहाँ तक कोई बिरला व्यक्ति ही पहुंच पाता है । क्योंकि एक धन और दूसरी नारी, इनका आकर्षण उसे बाँधने का प्रयत्न करता है। ज्ञान-प्राप्ति भी मानव का एक पवित्र और अत्युत्तम लक्ष्य है अतः उसे प्राप्त करने के लिये भो मनुष्य को भोग-विलास का त्याग करना चाहिये अन्यथा लक्ष्य-सिद्धि होनी कठिन हो जाएगी। निद्रा के प्रकार
निद्रा के दो प्रकार माने गये हैं-एक द्रव्य-निद्रा तथा दूसरी भाव-निद्रा ।
द्रव्य-निद्रा के विषय में मैं अभी तक बहुत कुछ बता चुका हूँ और यह भी बता चुका हूँ कि उसकी अति से ज्ञानाभ्यास में किस प्रकार बाधा पड़ती है ।
अब हमें लेना है भाव-निद्रा को। एक बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि द्रव्य-निद्रा में सोया हुआ व्यक्ति तो हिला-डुलाकर, झंझोड़कर या पाना डालकर भो किसी तरह जगाया जा सकता है । किन्तु भाव-निद्रा में सोए हुए व्यक्ति को जगाना बड़ा कठिन होता है ।
आपको जानने को उत्सुकता होगी कि आखिर भाव-निद्रा क्या है जिसमें पड़ा हुआ व्यक्ति जल्दी से जाग भी नहीं पाता । भाव-निद्रा है मनुष्य की क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष तया प्रमाद और मिथ्यात्व आदि में पड़े रहने की
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