________________
पुरुषार्थ से सिद्धि
२७
संयोगवश उसी दिन एक चील कहीं से रत्न जटित हार चोंच में दबाकर उड़ती हुई उधर से गुजरी । उसकी दृष्टि खून से भरे किसी पदार्थ पर पड़ी। आप जानते ही हैं कि गिद्ध तथा चील आदि पक्षियों को मृतक शरीर से अधिक प्रिय अन्य कोई वस्तु नहीं होती। अतः उसने हार को वहीं पटक दिया और जल्दो से मृत सर्प को मुंह में दबाकर उड़ गई।
वास्तव में ही जब भगव न देता है छप्पर फाड़कर देता है, पर व्यक्ति को उद्यम कभी नहीं छोड़ना चाहिये। उस निर्धन व्यक्ति के परिवार वालों ने जब मृत सर्प के बदले चील को रत्न-हार छोड़कर जाते देखा तो सब प्रसन्नता से पागल हो उठे । सारी दरिद्रता कपूर के समान उड़ गई। ससुर ने अपनी पुत्रवधू की बहुत प्रशंसा की।
किन्तु उसने केवल यही कहा -"यह सब आपके उद्यम का ही फल है । जो व्यक्त थोड़ा भी उद्यम या पुरुषार्थ करता है भाग्य उसका साथ अवश्य देता है।" एक संस्कृत भाषा के श्लोक में कहा भी है
यथाग्निः पवनोद्धत: सुसूक्ष्मोऽपि महान् भवेत् ।
तथा कर्म समायुक्त देवं साधु विवर्धते ॥ जिस प्रकार थोड़ी-सी आग वायु का सहारा पाकर बहुत बड़ी हो जाती है, उसी प्रकार पुरुषार्थ का सहारा पाकर देव का बल विशेष बढ़ जाता है। ___ इसीलिये पूज्यपाद श्री तिलोक ऋषि जी महाराज ने कहा है - उद्यम से ही ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है, द रद्रता मिटती है और इतना ही नहीं, धर्म-क्षेत्र में उद्यम करने वाला साधक तो केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन प्राप्त करके मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। . इसलिए बंधुओं, हमें कभी भी ज्ञान-प्राप्ति के प्रयत्न में प्रमाद नहीं करना च हिये तथा किसी भी कारण से निराश नहीं होना चाहिये। अनेक व्यक्ति थोड़ी-मी आयु के बढ़ने ही ज्ञान-प्राप्ति के प्रयत्न का सर्वथा त्याग-सा ही कर देते हैं । ऐसे व्यक्तियों से अगर हम कभी पूछ लेते हैं-"क्यों भाई ! सामायिक करते हो?"
उत्तर मिलता है -"महाराज, सामायिक के पाठ नहीं आते।" हम पुन कहते हैं -"नहीं आते तो सीख डालो।"
पर जवाब छूटते ही मिल जाता है-"अबे काई सीखणरी टेम है महाराज ?" यह लीजिये, हमीं से से उलटा प्रश्न हो गया। पर हम भी कच्चे नहीं है । कह देते हैं-"हाँ, अब भी टाइम है। रोज एक-एक शब्द भी याद करोगे तो याद हो जायेगा।"
मुस्लिम जाति में तो कहा जाता है कि जन्म लेते ही बच्चे की पढ़ाई चालू हो जाती है और उसे कब में जाने तक पढ़ते रहना चाहिए। मैंने सुना है - एक पाश्चात्य विद्वान् की अस्सी वर्ष की उम्र हो जाने के पश्चात् अध
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org