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२८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
मागधी (प्राकृत) भाषा पढ़ने की इच्छा हुई और उसने उसे पढ़कर जैन दर्शन में बहुत अच्छी जानकारी हासिल कर ली ।
कहने का अभिप्राय यही है कि उम्र की परवाह किये बिना जब भी ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हो, मनुष्य को उसके लिए उद्यम करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। किसी विद्वान् ने कहा है
गतेऽपि वयसि ग्राह्मा विद्या सर्वात्मना बुधैः ।
यद्यपि स्यान्न फलदा, सुलभा सान्यजन्मनि ॥
अर्थात् - - उम्र बीत जाने पर भी बुद्धिमान् मनुष्य हर तरह से विद्या को प्राप्त करे । चाहे वह इस जन्म में फल न दे लेकिन दूसरे जन्म के लिए सुलभ हो जाती है ।
कितना महत्त्व बताया गया है ज्ञान का ? इसीलिए कहा जाता है कि ज्ञान-प्राप्ति के मार्ग में "जब जागे तभी सबेरा" मानकर चल देना चाहिये । एक सत्य प्रसंग है -
शास्त्र विशारद प्रौढ़ कवि श्री अमीऋषी जी महाराज का एक बार अहमदनगर में चातुर्मास हुआ । चारों ओर के लोग दर्शनार्थ आया ही करते थे । उन्ही दिनों अमरावती के समीप चान्दूर बाजार नामक स्थान से श्री बधुमल जी रांका भी सपरिवार दर्शनार्थ आए । उनकी उम्र उस समय साठ वर्ष की थी ।
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पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने उस दिन प्रवचन में सहज ही कहा जो व्यक्ति यह कहता है कि हमको ज्ञान हासिल नहीं होता अथवा कुछ याद करें तो स्मरण नहीं रहता, यह गलत बात है । सामायिक अथवा प्रतिक्रमण का कोई एक-एक शब्द भी प्रतिदिन याद करे तो बारह महीने में प्रतिक्रमण सम्पूर्ण याद हो सकता है । याद नहीं होता, यह कहना केवल न सीखने का बहाना मात्र है तथा बड़ी भारी कमजोरी है ।"
प्रवचन सुनने वाले श्रोताओं में श्री बुधमल जी रांका भी बैठे थे । उनके हृदय में यह बात बैठ गई । व्याख्यान के पश्चात् उन्होंने श्री अमीऋषि जी महाराज से निवेदन किया- "महाराज ! मुझे नियम करवा दीजिये प्रतिदिन एक नया शब्द याद करने का । मुझे प्रतिक्रमण याद करना है ।" यह नियम लेकर उन्होंने रोज एक शब्द सीखने का क्रम चालू रखा और पूरा प्रतिक्रमण कण्ठस्थ कर लिया । जब मेरा चातुर्मास चान्दूर बाजार में था मैंने देखा कि वे प्रतिदिन श्रावकों को प्रतिक्रमण सुनाते थे ।
वस्तुत प्रयत्न और उद्यम करने से ही मनुष्य की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है । केवल मनोरथ करने से तो कुछ नहीं हो सकता । पचतन्त्र में कहा
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