________________
निद्रा त्यागो ! ३५ उनके जीवन के अविभाज्य अंग थे और स्पष्ट है कि इन सबका उपयुक्त समय ब्रह्ममुहूर्त ही होता है। गांधीजी की सर्वप्रिय प्रार्थना भी यही थी :
उठ जाग मसाफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है।
जो सोवत है सो खोवत है जो जागत है सो पावत है ॥ वस्तुत: प्रातःकाल का समय बड़ा महत्त्वपूर्ण और पवित्र होता है। इस काल में साधक का चित्त चिन्तन, मनन तथा ध्यान आदि में जितना एकाग्र रहता है, उतना अन्य किसी भी समय में नहीं रह पाता। इसी प्रकार एक ज्ञानाभिलाषी छात्र सम्पूर्ण दिन में जितना पाठ याद नहीं कर पाता उससे भी बहुत अधिक वह प्रातःकाल के अल्प समय में ही याद कर लेता है। यह प्रभाव उस शुभ समय का ही होता है।
इसलिये, प्रत्येक ज्ञान-वृद्धि के इच्छुक प्राणी को अपना प्रात.कालीन अमूल्य वक्त केवल निद्रा में व्यतीत करके नष्ट नहीं कर देना चाहिए । अन्यथा बाद में उसे केवल पश्चाताप ही करना पड़ता है। एक स्पष्टवक्ता ने कहा भी है
सोना-सोना मत करो यारो, उठकर भजो मुरार ।
एक दिन ऐसा सोयेगा, लम्बे पाँव पसार ॥ ___ क्या कहा है ? यही कि "जीवन की इन अमूल्य घड़ियों में क्या तू सोऊं. सोऊ करता रहता है ? सोने को तो एक दिन ऐसा मिलेगा कि पुनः उठना संभव ही नहीं होगा। अतः जब तक तुझमें उठने की शक्ति हैं, प्रातःकाल उठकर प्रभु का स्मरण किया कर।" सोया हुआ कौन रहे
प्रश्न बड़ा विचित्र है और सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि क्या प्रात:काल के वक्त भी कोई सोया हुआ रहे तो ठीक रहता है ? पर बात यह यथार्थ है । संसार में ऐसे भी अनेक जीवों की कमी नहीं है जो कि अधिक से अधिक सोते रहने को अच्छा मानते हैं ।
श्रीभगवती सूत्र में वर्णन आता है कि जयन्ति नामक एक सुश्राविका ने श्री मह वीर भगवान् से प्रश्न किया
'भगवन ! यह जीव सोता हुआ अच्छा है या जागता हुआ ?"
देखिये इस संसार में प्रश्नकर्ताओं की कमी नहीं रही और प्रत्येक प्रकार का प्रश्न और उसका समाधान सदा होता रहा है।
तो श्राविक के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कहा-"कितने ही जीव सोते हुए अच्छे होते हैं और कितने ही जीव जागते हुए अच्छे रहते हैं।" .
सुनकर आश्चर्यपूर्वक पुनः पूछा गया-"भगवन यह कैसी बात ? सोते हुए भला कोन अच्छे रहते हैं ?"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org