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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
भगवान के द्वारा उत्तर मिला-"जो जीव पातकी हैं, आरम्भ-परिग्रह करने वाले हैं, धर्म के विरुद्ध आचरण करते हैं, वे सोते ही अच्छे हैं, उनका जागना ठीक नहीं।"
अच्छा भगवन् ! अब यह बताइये कि "जागते हुए कौन से जीव अच्छे रहते हैं ?" पुनः प्रश्न हुआ।
"धर्मात्मा पुरुष जागते हुए अच्छे हैं। क्योंकि वे जागते रहेंगे तो तत्त्वचिंतन करेंगे, शास्त्र-स्वाध्याय करेंगे, जप-तप करेंगे और परमात्मा का भजन करेंगे । ऐसे धर्मी पुरुषों का जागता रहना अच्छा हैं।" महात्मा कबीर कह भी गये हैं :
सोता साध जगाइये, कर नाम का जाप ।
यह तीनों सोते भले साकत, सिंह औ सांप ॥ क्या कहा है ? यही कि साधु पुरुष को तो सोया हुआ भी जगा देना चाहिये ताकि वह उठकर प्रभु का नाम जपे पर दुष्ट, सिंह और सर्प जैसे हिंसक प्राणी सोये हुए रहें, इसी में सबका भला है। यद्यपि इस पद्य में सोये रहने वाले जीवों में मनुष्य का उल्लेख नहीं किया गया है पर हम जानते हैं कि हिंसक जन्तुओं की अपेक्षा कर और पातकी मानव समाज के लिये अधिक भयानक और खूखार होता है। सिंह तथा सर्प आदि जीवों की अपेक्षा भी वह प्राणियों का अधिक अहित करता है। इसलिए उसका सोया रहना अच्छा है। उलटी गंगा भगवत् गीता में कहा गया है :
या निशा सर्वभूतानां, तस्यां जागृति संयमी।
.. यस्यां जाग्रति भूतानी, सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ श्लोक के भाव अत्यन्त मामिक हैं। इसमें कहा है-संसार के समस्त प्राणी जब रात्रि के समय सो जाते हैं, उस समय संयमी पुरुष जागते हैं और जिस समय सारी दुनिया जागकर अपने दुनियादारी के प्रपंचों में लग जाती हैं, वे उसे रात्रि मानते हैं अर्थात्-संयमी या मुनि रात को दिन और दिन को रात समझते हैं। ___आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि ऐसा क्यों ? यह तो सरासर उल्टी बात है पर है यह सत्य । रात को दिन और दिन को रात मानना साधक की भावनाओं के कारण ही संभव है। इसका कारण यही है कि रात्रि के समय सर्वत्र शान्ति रहती है, तनिक भी शोरगुल नहीं होता और आवागमन बन्द रहने से साधक का चित्त स्थिर बना रहता है। परिणामस्वरूप वह एकाग्रचित्त से चिंतन, मनन तथा ध्यान आदि अपनी धार्मिक क्रियाओं को
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