Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 37
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] कच्छमत्रको रोगः। बह. २४९ अ। शर्करा-भ्रूणपथिवी। | सक्कारिय-सत्कारितः वस्त्रादिना। भग० ५. जीवा० १४० शर्करा-लक्ष्णपाषाणशकलरूपा। उत्त. | सक्कारेमो- सत्कारयामः आदरं कुर्मः वस्त्राचनं वा ६९७। शर्करा, काशादिप्रभवा। जम्बू. ११८ शर्करा सन्मानयामः। भग० ११५ काशादिप्रभा-वातद्रसो वा। उत्त०६५४१ आचा० ३३७) सक्कुणोमि- सत्कारयामः आदरं कुर्मः वस्त्राचनं वा सक्कराभा- गौतमगोत्रे पञ्चमभेदः। स्था० ३९० सन्मानयामः। भग० ११५ सक्का- युक्तम्। निशी. ९७आ। सक्कुरओ- सत्तुरतः-प्रद्योतनसभायां कश्चिदन्धो सक्कार-सत्कारः अर्धप्रदानादिः। उत्त०६६८ सत्कार:- ___ गायकः। आव० ६७४। स्तवनवन्दनादिः। स्था०४०८। सत्कारः वस्त्रादिभिः। | सक्कुलि-शष्कुनिः तिलपर्य-टिका। दशवै० १७६। स्था० १३७ सत्कारः-वन्दनाभ्युत्थानादिकः। ओघ० | शष्कुलो-तलपर्पटिका। प्रश्न० १५३॥ ७०| सत्कारः-वन्दनस्तवनादिः। सम० ९५१ सत्कारो- सक्कुलिकन्ना- शष्कुलीकर्णनामा अष्टम अन्तरद्वीपः। वन्दनादिनाऽऽदरकरण वस्त्रादिदानम्। भग० ६३७ प्रज्ञा० ५० सत्कारः- सेव्यतालक्षणः। जम्बू. १२२। सत्कारो- सक्कुलिगा- शुष्कखायकं मोदकवत्। बृह. १७७ अ। वस्त्राभ्यर्चनम्। स्था० ३५८| सत्कारः-वस्त्रादिपूजा। सक्ख- साक्षम्। ज्ञाता० २२१| भग० ३९० अभ्युत्थानादिसम्भ्रमः सत्कारः। आव. सक्खि -साक्षी। आव० ८२२ साक्षी। प्रश्न. ३० ४०६। सत्कारः-भक्तपानवस्त्रपात्रादीनां परतो लाभः, सक्खेत्त-स्वक्षेत्रं-सक्रोशयोजनामन्तरम्। बृह. १८३ अ। एकोनविंशतितमः परीषहः। आव०६५७। सत्कारः- सक्थिनी- पाश्चात्यपादयोर्जामूपरिभागः। जम्बू० ३७ स्तवनवन्द-नादिः। दशवै. ३० सत्कार: सखलियार-सोपवारम। आव०४०१। सेव्यतालक्षणः। जीवा० २८०| सत्कारः- वस्त्रादिभिः सखा- मित्रम्। आचा० १०० पूजनम्। उत्त० ८३। सत्कारः-भक्तपानवस्त्रपात्रादीनां सखिखिणिय-सकिङ्किणीकः। क्षुद्रघष्टिकोपेतः। ज्ञाता० परतो लाभः। आव०६५८ सत्कार: ३१ वन्दनाभ्युत्थानादिः। बृह० २३७ अ। सत्कारः- सखुड्ड- सबालं यदि वा सह क्षुद्रः सिंहमार्जारादिः। आचा. स्तुत्यादिगुणोन्नतिकरणम्। राज० २७। सत्कारः- રૂદ્રા . प्रवरस्त्रीदिभिः पूजनम्। स्था० ५१५। सत्कारः-स्तुत्या- | सखेत्तं- सक्रोशयोजनमात्रं क्षेत्रम्। बृह० १४० आ। निशी० दिभिणोन्नतिकरणम्। जम्बू० ३९८१ सत्कारः - प्रवरव- | १८ । स्त्राभरणादिभिरभ्यर्चतम्। आव०७८७। सत्कारा- सगंथ-सग्रन्थ-श्वशक्लसम्बन्धसम्बद्धः अभ्युत्थानासनदानवन्दनानुव्रजनादिः। आव० ८३७ । ___ शालकशालिकादिः। प्रश्न. १४० सक्कारणिज्ज- सत्कारणीयम्। सूर्य. ३६७। वस्त्रादिभिः। | सगज्जिए- सगर्जितः-मुक्तमहाध्वनिः। ज्ञाता० २४॥ भग० ५०५। वस्त्रैः । औप०५१ सगड- शकटं सुभद्राभद्रवाहपुत्रशकटनामा सक्कारपुरक्कार- सत्कारः-वस्त्रादिभिः पूजन पुरस्कारः- विपाकेऽध्ययनम्। स्था० ५०७ शक्नोति शक्यते वा अभ्युत्थानासनादिसंपादनम्। धान्यादिकमनेन वोढ-मिति शकटम्। उत्त० २४७) सकलैवाभ्युत्थानाभिवादन-दानादिरूपा प्रतिपतिः शकटं-गड्डुकादि। अनुयो० १५९। सव्वमेतं कृतम्। सत्कारस्तेन पुरस्करणम् सत्कार-पुरस्कारः। उत्त० निशी० १३८ आ। शकटं प्रतीतम्। जीवा० २८१। शकट८३ गन्त्री। प्रश्न० ८ भग० २३७। शकटं-मन्त्री। प्रश्न० १६१, सक्कारवत्तिया- सत्कारप्रत्ययं-सत्कारनिमित्त ९१। शङ्कटः-शकटा-भिधसार्थवाहस्तः, दुःखविपाकानां प्रवरवस्त्रा-भरणादिभिरभ्यर्चननिमित्तम। आव. चतुर्थमध्ययनम्। विपा०६५। ७८६| सगडतित्तिदी- शकटतित्तिरी शकटयुक्ता तित्तिरी। सक्कारिता-सत्कारयित्वा वस्त्रादिना। स्था० १११ दश.५९ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [37] "आगम-सागर-कोषः" [५]

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